सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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गणतंत्र दिवस:लोकतंत्र की नयी सुबह (२६ जनवरी २०२५ विशेष)…
कैसे कह दूँ नयी सुबह जब, स्वाभिमान पर धूल चढ़ी,
कैसे कहूँ आजाद सुबह, जब हिन्दू का कोई राष्ट्र नहीं ??
देशभक्ति की सुनहरी चिड़िया, फुर्र हो गई रुकी नहीं,
स्वार्थी झूठे नेताओं ने, उसको चहकने दिया नहीं।
हो गया गणतंत्र पुराना, संविधान में पुनरुद्धार नहीं,
सड़ी-गली हुई न्याय व्यवस्था, सुशासन देती नहीं।
भारी बस्ते के बोझ से, बच्चे तक आजाद नहीं,
छटपट करता उनका बचपन, देखा अब जाता नहीं।
उड़ गया संतोष कपूर-सा, आपा-धापी मची हुई,
भाग रहे क्षितिज तलक पर, मंजिल का कुछ पता नहीं।
बिना जुल्म के सजा सह रहे, कारागृह में जगह नहीं,
लोकतंत्र की न्याय-व्यवस्था, कौन करेगा इसे सही ?
ढेरों अगुवाओं ने कितना, देश को लूटा पता नहीं…?
जनता पिसती-मरती रहती, नैतिकता का भान नहीं।
अंधी दौड़ से शिक्षित युवा, पाएगा क्या चैन नहीं ?
धन की असीमित चाह में ये, जीवन बीता जाय कहीं।
नयी सुबह उजली दुनिया पर, अंदर सीलन छुपी कहीं,
नहीं चमकते सुंदर चेहरे, शांति कहीं भी दिखी नहीं।
भर-भर श्रद्धा देश-प्रेम की, घुल जाए रक्त में अगर अभी,
स्वच्छ-सरल भारत की कश्ती, डगमगाएगी नहीं कभी॥
