डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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तुम्हारी नजरों ने जबसे देखा,
अजब-सी चाहत उभर रही है।
छुपे हुए दबे अहसासों से,
नजर हमारी उतर रही है।
सवालों की है कद्र तुम्हारी,
जवाबों की भी उम्र बड़ी है।
सुना है हमने तुमको जबसे,
फिज़ा भी हमसे चहक रही है।
खिले गुलाबों की रंगतों से,
हवाएं भी यूँ सर्द हुई है।
गजब मोहब्बत हुई है तुमसे,
कली-कली भी महक रही है।
कर्म खुदा का हुआ ऐसा,
अजब बहारें बरस रही है॥