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जीवन सच की राह चलाना सीखें

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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हम अपना ये जीवन सारा सच की राह चलाना सीखें।
झूठ कपट अरु लोभ मोह को मन से दूर हटाना सीखें॥

राह चलेंगे जब नेकी की जीवन निर्मल हो पायेगा,
संगति सत् की करने से ही तन मन पावन हो जायेगा।
औरों का दु:ख अपना समझें काम सभी के आना सीखें,
हम अपना ये जीवन…॥

जीवन का उद्देश्य समझ कर कर्म सभी हम करते जाएं,
रिश्ते-नाते मधुर बनें, कर्तव्य मार्ग पर बढ़ते जाएं।
भेद मिटा ऊँचे-नीचे का सबको गले लगाना सीखें
हम अपना ये जीवन…॥

देश धर्म का पालन करना शास्त्र हमें ये सिखलाता है,
कर्मशील मानव ही अपनी संस्कृति सदा बचा पाता है।
जन्म लिया जिस मिट्टी में उसकी खातिर मर जाना सीखें,
हम अपना ये जीवन…॥

कौन यहां रहने आया है निश्चित नहीं ठिकाना अपना,
जाने कब आँखें खुल जाएँ कुछ ही पल का है ये सपना।
कर सुकर्म अपने जीवन को सुखमय सभी बनाना सीखें,
हम अपना ये जीवन…॥

तोड़ सभी माया के बंधन छोड़ सभी ये मेरा तेरा,
ध्यान प्रभु का करले मनवा मिट जाये जोगी का फेरा।
एक सच्चिदानंद ईश है शरण उसी की जाना सीखें,
हम अपना ये जीवन सारा सच की राह चलाना सीखें॥

परिचय–शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है