राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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तुम्हीं बताओ तुमको दिनकर,
चाहूं, निकट बुलाऊं मैं
तेजोमय इतने हो तुम,
कैसे पास बिठाऊं मैं ?
बहुत परोपकारी हो भास्कर,
किससे सीखा तुमने दान!
धरती के देव हो तुम तो,
जग करता है तुम्हें प्रणाम।
हम मानव हैं ऋणी आपके,
कैसे खुश कर पाऊं मैं ?
जग को उजियारा देते हो,
कभी नहीं भी थकते तुम
तुम बिन जीवन अंधकारमय,
जीव-जगत रहते गुमसुम।
तुम्हीं धरा के पालनहारे,
गर्व से भर भर जाऊं मैं।
अरे! मायूसी कहां से आई ?
कैसी शिकन है माथे पर ?
बुझा-बुझा-सा चेहरा है क्यों ?
कैसा बोझ है कांधे पर ?
सूरज बोला,-“व्यथा बड़ी है,
क्या-क्या तुम्हें सुनाऊं मैं ?”
काट दिए हैं जंगल सारे,
ऑक्सीजन को तरसें सब
गैसें इतनी उत्सर्जित होतीं,
वातावरण दम-घोंटू अब।
मानव इतना खुदगर्ज हो गया,
ये सोच-सोच घबराऊं मैं।
रक्षक मानव बना है भक्षक,
संपूर्ण धरा में जहर घुला
शुद्ध हवा,ना शुद्ध है पानी,
रोगों का अंबार लगा।
सारी सृष्टि ले डूबेगा,
इस आशंका से डर जाऊं मैं।
सूरज बोला,-“व्यथा बड़ी है,
क्या-क्या तुम्हें सुनाऊं मैं…?
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।