डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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आओ न उनका एक दीदार हो जाए,
बेचैन दिल फिर एक बार मौन हो जाए।
आओ तस्वीर दिखाऊँ एक महबूब की,
दिल में बसी यादें वो भी पुरजोर हो जाए।
मेरा गम बड़ा गमगीन है जिसने गम,
दिया वही काश! मरहम भी लगा जाए।
हम तो बेकशी के तसव्वुर में आए हैं,
हजारों दिलो की धड़कन को जिया जाए।
दूरी सही न जाए, लड़कर रहा भी न जाए,
‘शाहीन’ कहा भी न जाए, सहा भी न जाए॥