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भूख की तपिश…

एम.एल. नत्थानी
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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भूख से कुलबुलाते पेट में निष्ठुर खाली थपेड़े हैं,
पीठ से चिपके तन पर गरीबी के पैबंद जकड़े हैं।

भूख की लाचारी में दर्द छिपाए किसे जानता है,
निर्धन व्यक्ति प्रार्थना के सहारे जीवन काटता है।

खाली पेट की आवाजें विवशता कहा करती है,
शून्य में निहारती आँखें सब-कुछ बयां करती है।

रेत पर जलती आग की तरह ही जीवन तपता है,
भूख की आँच से चिंगारी बनकर ही तड़प उठता है।

जीने की अदम्य लालसा से भूखे रहकर लड़ता है,
रुखी-सूखी खाकर फिर से जीवन यापन करता है॥