उर्मिला कुमारी ‘साईप्रीत’
कटनी (मध्यप्रदेश )
**********************************************
करूणा करो कष्ट हरो हे गिरिधर,
तुमसे मेरी आस जुड़ी हे हरीहर
भव में फंसी नाव मेरी करो पार,
मुझपे दया दृष्टि धरो हे मुरलीधर।
पर सेवा, पर पूजा, पर सच्चा प्यार,
रही न इंसानियत किसी पर बार
मैं भी पीड़ित हूँ जग करो उद्धार,
तू है नारायण हरि जाने हे संसार।
बंशी की धुन सुनकर सारी ग्वालिनें,
पहुँची गगरी भरने कदम यमुना तीरे
छिपे बैठे कदम डाल कंकड़ियाँ मारे,
कपड़े लुका-छिपी कर खेले बंशी बाजे।
मधुर बंशी की धुन सुन कालिया नाचे,
फन फैलाकर उस पर कृष्णा जी बैठे
पुछना कालिया का भी विनाश करते,
जगत पालनहार, जगत के कष्ट हरते।
मोर मुकुट सिर सजे हाथ चक्र धारी,
बैंजंती मोती माला चूड़ा कर हे धारी
नैयन चंचल चंचलता छवि-सी प्यारी,
हे गोविंदा गूंज रही मुरली धुन प्यारी।
श्याम धुन रंग में मैं भी रंग गई हूँ प्यारे,
राधे-राधे मन मेरा भी गुनगुनाए प्यारे
हे हरि विष्णु गोविंद तुम्हारे सहारे,
ज़िंदगी की डोर सौंपी मैंने तिहारे।
लोक-लाज-शर्मिंदगी सब छोड़ दिया है,
तेरी शरणम् खुद को मैंने सौंप दिया है।
तार दे भव में फंसी मेरी जीवन नैया,
‘उर’ से तुम्हें नमन मुरलीधर कन्हैया॥