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अटल कर्मपथ अविरत जीवन

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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‘अटल’ जिंदगी…

अटल कर्मपथ अविरत जीवन,
अजातशत्रु यश कालचक्र था
संस्कार सदाचार समन्वित,
धीर शील सच राष्ट्र फक्र था।

भारत माँ का राजदुलारा,
राजनीति का कालचक्र था
कठिन साधना वक्त साथ चल,
जन मनमोहन वागभट्ट था।

सम्मोहक दुनिया चरित्र बन,
नव भविष्य पथ दिग्दर्शक था
कूटनीति सत्प्रेरक नायक,
निर्माणक आगम भविष्य था।

लिखने को आतुर नव गाथा,
कवि हियतल हिमवत अविचल था
हास भाष परिहास सहजता,
महा दार्शनिक चित निर्मल था।

मातु भारती पद्म विभूषण,
भारत सेवी महारत्न था
भाषाविद हिन्दीमय तन-मन,
विश्व समादृत अटल रत्न था।

सदा विहारी नाम बिहारी,
सद्भावना समरस प्रतीक था
सर्वोत्तम सांसद था संसद,
प्रधानमंत्री जनसेवक था।

धर्म सनातन कट्टर मानक,
फिर भी समरसता प्रतीक था
परमाणु विस्फोटक नायक,
कारगिल विजयी शान्तिप्रद था।

शान तिरंगा राष्ट्र एकता,
शान सभ्यता संस्कृतिमय था
प्रकृति बिहारी अटल निहारी,
अमरदूत लिखता कपाल था।

सौहार्द्र प्रेम सद्नीत प्रीतमय,
नवनीत हृदय सद्मीत सकल था
रोम-रोम गुंजित भारत जय,
महाबली मतिमान अटल था।

कोटि-कोटि जन-मन अनुप्राणित,
अटल बिहारी वाजपेई था
संघ छात्र संरक्षक गायक,
विश्व भ्रातृ मन शहनाई था।

कलम सिपाही समय चक्र पट,
आतुर लेखन संकल्पित था
मित्र आडवाणी नानाजी,
कल्याणक जग संदीपन था।

महाप्रयाण तन, पर अकिंचन,
कालिक कपाल पर लिखता था
शक्ति भक्ति संप्रीति देश जन,
स्वर्णिम अतीत यश भारतमय था।

अप्रणीत संन्यासी संसाधक,
मितभाषी साहसी निर्भय था।
क्षमा, दया करुणा ममता दिल,
महावीर जनसीदन हिय था॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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