श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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अबके बरस आ जाने दो सावन को,
खत लिख कर बुला लूॅ॑गी साजन को।
गए हुए परदेस पिया को बीते हैं साल,
कुछ तो याद करो,क्या है हमारा हाल।
अबके बरस आने दो तीज का त्योहार,
पिया नहीं आएं तो कैसे करूंगी सिंगार।
सखी बोल ना,काहे ना आते हमारे पिया,
लगता,सौतन में फंस गया उनका जिया।
मैं जानती सखी,परदेस नहीं जाने देती,
आँचल के छोर में,मैं बांध कर रखती।
जाने क्यों मुझे सखी-सहेली ना भाती है,
क्यों दिन-रात पिया जी की याद आती है।
कहा था इस बार तेरे संग खेलूँगा होली,
खरीदूँगा तेरे लिए अबके लहॅ॑गा-चोली।
जो किया था वादा,वो सब बिसर गया,
लगता है प्यार करने का भूत उतर गया।
सखी ‘देवन्ती’ कभी ना उन्हें भूल पाएगी,
अबके बरस पिया को,यादें दिलाएगी॥
परिचय–श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।