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अभिलाषा

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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काव्य रूपी नाव ले उस पार जाना चाहता हूँ।
शब्द की पतवार से सागर हराना चाहता हूँ॥

गद्द रूपी पंक्तियों को तोड़कर कविता बनायी,
रेत में डूबी नदी को खोद कर सरिता बहायी।
जोड़ अक्षर के सहारे,तोड़ लाया चाँद तारे,
जिंदगी के इस किले को यूँ सजाना चाहता हूँ।
शब्द की पतवार से…॥

जनता हूँ इस जगत में पुष्प की है आयु कितनी,
और जीवन की गगर में प्राण रूपी वायु कितनी।
ओज के यश गान न्यारे,मौन करुणा के सहारे,
फैल कर आकाश तक विस्तार पाना चाहता हूँ।
शब्द की पतवार से…॥

जीवनी कैसा प्रभंजन और कितनी आपदाएं,
एक तरणी एक नाविक नापनी हैं दस दिशाएं।
दिख रहा आता बुढापा,देह का हर रोम काँपा,
उठ रहे तूफान पर अंकुश लगाना चाहता हूँ।
शब्द की पतवार से…॥

हाथ की रेखा हमेशा भाग्य लीकों से लड़ी है,
भूख पीछे छोड़ता हूँ प्यास मुँह खोले खड़ी है।
भूत के आयाम सारे,राह आगे की सँवारे,
प्रीत ‘हलधर’ गीत में अमरत्व लाना चाहता हूँ।
शब्द की पतवार से सागर हराना चाहता हूँ…॥

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