हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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आई है होली चहुं ओर लोग झूमे हैं नाचे, रंगों की बौछार है,
किसी के दिल में वासनाएं हैं घनी, किसी के प्यार ही प्यार है।
आई है होली हरदम हृदय को, छेड़-छेड़ कर ये आती है,
फाल्गुन मास की यह क्रीड़ा, किसके मन को न भाती है !
कुदरत करती है वसंती श्रृंगार, तो हवा भी होती मदमाती है,
फूलों से सजते वन उपवन हैं, चहुं ओर से खुशबू आती है ।
होलिका दहन से उपजी यह क्रीड़ा, ऐसे ही बस चलती है,
बुराई का दहन अच्छाई का वहन, परम्परा यूँ ही फलती है।
बरसाणे की होली, कृपाण व गोली, रक्तिम रंग से खेली है,
वे प्रेम के रंग से खेले, इन्होंने प्रणाहुतियों की पीड़ा झेली है।
मलिन मन क्या जाने होली का उत्सव ?पावनता जरूरी है,
तन के रंगने से नहीं मन के रंगे बिन, होली सबकी अधूरी है।
मौसम के बदलाव की,नव फसलों के उगाव की, यह धुरी है।
संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों की, होली की क्रीड़ा पूरी है।
उछलते-कूदते, नाचते-गाते, खलियानों में युवक-युवती है,
बाल, वृद्ध सबको निज पाश में, बांधने की इसमें युक्ति है ।
वीर शहीदों ने फिरंगी संघ, होली खेल के यातनाएं भुगती है,
प्रेम गुलाल से जो खेलेगा होली, उसी के लिए यह मुक्ति है।
नदी मानिंद बहती परंपराएं, विकार आए हो कहां रुकती है ?
भारत की अनूठी पर्व यात्रा, किसी के टोके कहां टूटती है ?
बहन, भाई, माँ, बेटी, पत्नी, पिता को, होली के रंग ही लहदे हैं,
प्रेम है सबमें पर रूप अनेक है, यही तो रिश्तों के ओहदे हैं॥