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आओ, पेड़ लगाएं

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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आओ मिलकर पेड़ लगायें,
धरती का आँगन महकायें।

जीवन दाता वृक्ष हमारे,
प्राण वायु देते हैं सारे।
वृक्ष हमें सुख छाया देते,
बदले में कुछ भी नहिं लेते।

बनते हैं खिड़की-दरवाजे,
घर सारा शोभित हो साजे।
इनकी छाया में बैठे हम
गर्म हवा से मुक्ति पायें।

इस लकड़ी से बनता पलना,
झूले उसमें प्यारा ललना।
लकड़ी से भोजन बन जाता,
अपना जीवन वही चलाता।

वृद्धजनों का बने सहारा,
गाते भजन बने इकतारा।
इनको काट बनें नहिं पापी,
जान लगा कर इन्हें बचायें।

समिधा बनती यही हवन की,
कृपा बनी रहती भगवन् की।
पावन वातावरण बनाये,
रोग व्याधि से हमें बचाये।

वृक्ष हवायें लेकर आते,
बारिश यही वृक्ष करवाते।
यही जरूरत है जन-जन की,
सबको इनके गुण समझायें।

अंत समय तक काम आते हैं,
हो सवार इस पर जाते हैं।
समझ महत्ता इनकी जाओ,
चलो हजारों पेड़ लगाओ।

पेड़ न काटो पछताओगे,
पेड़ न होंगे मर जाओगे।
लगा लगा कर वृक्ष धरा पर,
चहुँ दिशि में हरियाली लायें॥

परिचय–शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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