कुल पृष्ठ दर्शन : 182

You are currently viewing समय की आवश्यकता है संयुक्त परिवार

समय की आवश्यकता है संयुक्त परिवार

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
***********************************************

घर-परिवार स्पर्धा विशेष……

हमारे कृषि प्रधान देश में संयुक्त परिवार रामायण व महाभारत काल से चली आ रही प्राचीन परम्पराओं व स्थापित आदर्शों के हिसाब से चल रहे हैं,लेकिन पिछले कुछ सालों में संयुक्त परिवार से निकल लोग एकल परिवार की तरफ आकृष्ट हो रहे हैं।
आज कोरोना के संक्रमण काल में यह सभी को समझ में आ गया है कि घर सबसे ज्यादा सुरक्षित स्थान है। हालाँकि,हमारे पूर्वज तो हमेशा से ही न केवल इसे यानि घर बल्कि संयुक्त परिवार के बारे में समझाते रहे हैं,पर इन बीते चालीस वर्षों में यह देखने में आ रहा है कि कई लोग अपने स्वार्थ और धनलोलुपता की वजह से कहिए या पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित हो अपना संयुक्त परिवार छोड़ एकल वाले सिद्धांत को अपना लेते हैं। वे यह कदम बिना दूर की सोचे उठा तो लेते हैं,लेकिन अब जब इस संक्रमण काल में एकल परिवार का एक भी सदस्य रोग ग्रसित होता है,तब उन्हें पुनः अपने दादा-दादी, नाना-नानी वगैरह द्वारा समझाई गई बात को याद कर सोचते हैं कि उन लोगों ने हमेंं ठीक ही संयुक्त परिवार के बारे में समझाया था। मतलब मिल-जुलकर रहेंगे तो न केवल हर दुःख हो या ख़ुशी मिल बाँटेंगे यानि आवश्यकता पड़ने पर हमें किसी भी प्रकार की बाहरी मदद पर निर्भर रहना नहीं पड़ेगा।
अपनी उम्र के इस पड़ाव पर एकल व संयुक्त परिवार से सम्बन्धित अनुभव अपने परिवार का ही बताना चाहता हूँ कि हम भाई संयुक्त होते हुए भी अलग-अलग शहरों में रहते हैं जिसका एकमात्र कारण व्यवसाय है। किसी भी तरह की नई जगह में प्रवेश का मामला हो,या किसी सदस्य की मृत्यु या फिर विवाह हो या मायरा के अलावा भी हर तरह के बड़े सामूहिक-पारिवारिक आयोजन पर हम सभी सपत्नीक इकठ्ठे ही नहीं होते हैं,बल्कि निर्णय भी सर्वसम्मति से ले क्रियान्वयन कर अपनी सहभागिता निभाते हैं। यानि सुख और दु:ख के समय आराम से सारे काम आसानी से निपट जाते हैं,जिससे किसी को कोई भी काम भारी नहीं लगता।
अब एक दूसरा उदाहरण,जो इस बार संक्रमण काल में सभी ने अनुभव किया होगा कि सब जगह से श्रमिक बिना समय गंवाए,कार्यस्थल छोड़, आनन-फानन में अपने-अपने गाँवों की तरफ सारी तकलीफें झेलते हुए भी पहुँचे और उनके संयुक्त परिवार के सदस्यों ने न केवल राहत की साँस ली, बल्कि जब तक वे घर में रहे उन सभी की पूरी देखभाल भी की,और ये लोग ने भी गाँव पहुँच कर परिवार के काम में अपना हाथ बंटाना शुरू कर दिया। इसी तरह श्रमिकों के अलावा कुछ ऐसे भी थे,जो संयुक्त परिवार से कट कर रह रहे थे,मजबूरन उन्हें वहीं कार्यस्थल वाली जगह पर ही रुकना पड़ा।इस बीच यदि कोई एक सदस्य भी संक्रमित या बीमार हुआ तो उस पर तो दु:खों का पहाड़ ही टूट पड़ा,क्योंकि सब-कुछ यानि दवा हो या भोजन सब व्यवस्था एक पर ही आ पड़ती है। ऐसे लोगों को इसके अलावा भी अनेक तरह की तकलीफों से रूबरू होना पड़ा है।
खास तथ्य यह है कि इस बार,विशेषकर कोरोना पीड़ित वाले एकल परिवारों को तो यह आभास हो गया कि पैसे के आगे संयुक्त परिवार बहुत मायने रखता है।
इस तरह इन सशक्त उदाहरणों से एकल व संयुक्त परिवार की ऐसी तस्वीर पेश है,जिससे वर्णित लाभ-नुकसान वाले तथ्य भी अपने-आप ही दिमाग में आने लगेंगे। फिर भी आज के समय यानि आर्थिक युग को ध्यान में रख कुछ व्यापक मुख्य बिन्दु जैसे-अनुभव,आत्मनिर्भरता,मदद,एकता,साँझा, सामाजिक सुरक्षा,मनोवाज्ञानिक मजबूती,काम प्रतिबंध,जल्द निर्णय,कम खर्च,अधिक गोपनीयता, संचय,विनिवेश,त्यौहार वगैरह पर लाभ-नुकसान अवश्य सोच लें,तो निर्णय लेने में सुविधा होगी।
इसके अलावा अनुभव अनुसार संयुक्त परिवार में समय-समय पर अनेक स्थापित मापदंडों में भी रजामंदी से सर्वमान्य बदलाव अपनाए गए हैं। यानि,आज के परिवेश को ध्यान में रख रजामंदी से सर्वमान्य बदलाव की पूरी-पूरी गुंजाईश है।
निष्कर्ष तो यही है कि,संयुक्त परिवार की नींव में सहिष्णुता और निस्वार्थ भाव से आपसी सहयोग मुख्य बिन्दु हैं,जिसका तात्पर्य यही है कि अगर मिल-जुल कर रहेंगे तो आसानी से हर एक समस्या पर आपसी रजामंदी से समय रहते ही निजात पा सकते हैं।
उक्त बातों को कवि लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ ने दो पंक्तियों-‘एकाकी जीवन सदा,बैठा दु:ख की छाँव। पड़ जाते परिवार में,बरबस सुख के पाँव॥’ के माध्यम से हम सभी को स्पष्ट सन्देश दे सचेत किया है।
अत: हमें हमेशा ही परिवार में मिल-जुल कर रहने की कोशिश करना चाहिए,ताकि हम आपस में खुशी-खुशी जीवन जी सकें।इसलिए संयुक्त परिवार का हिस्सा बनें,क्योंकि जब परिवार में एकजुटता रहेगी,तभी एक मजबूत समाज का निर्माण हो पाएगा,जो आज के समय की आवश्यकता है।

Leave a Reply