सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
**********************************
आज सफ़र पर हैं हम,
ख़ूबसूरत-सी डगर पर हैं हम
कुहासे की भोर है,
धुआँ धुआँ चहुँ ओर है।
खेत कहीं दिख जाता,
कहीं कोई पक्षी चहचहाता
कहीं कुछ नज़र नहीं आता,
कहीं कोई राही थक जाता।
कहीं कोई पहाड़ कहीं नदी,
कुछ साफ़ नज़र नहीं आता
गाड़ियाँ चली जा रही हैं,
एक के पीछे एक दौड़ रही हैं।
बहुत सम्हल कर चल रही हैं,
नहीं कुछ देख पा रही हैं।
मैं अपनी गाड़ी में बैठी हूँ,
यही सोचती जा रही हूँ।
ज़िन्दगी भी तो कुछ ऐसी है
कहाँ कुछ दिखाई पड़ता है।
सोचते क्या हैं, होता क्या है,
आगे क्या है, कुछ समझ नहीं॥