ऋचा गिरि
दिल्ली
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पूर्णता की तलाश में,
शून्यता को नज़र अंदाज़ कर
द्वंद्वात्मक प्रश्नों के साथ,
बालकनी में खड़ी
खुले आकाश की ओर,
मौन देखती अर्ध चन्द्रमा।
सागर किनारे,
रेत पर बैठ
मौन देखती अर्ध सूर्य,
घर के आँगन में बैठ
मौन देखती,
गमले में अधखिला गुलाब
सत्य आधा नहीं,
पर ‘आधा’ तो सत्य है।
कल-कल,
छलछल की
मधुर झंकार करती,
बहती हुई नदी भी
अर्ध है
समुद्र में जा मिली,
और पूर्ण हो गई।
अवसाद और उमंग से,
भरा जीवन भी अर्ध है
मृत्यु आई,
और यह पूर्ण हो गई
सत्य आधा नहीं,
पर ‘आधा’ तो सत्य है।
सत्य ही शिव है,
शिव ही सुंदर है॥