मानसी श्रीवास्तव ‘शिवन्या’
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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मैंने सीखा है पतंगों से,
ऊँचा उड़ना नभ में।
न रखा है अभियान किसी से,
स्वाभिमान भरे इस जीवन में।
कटने का भय भी है,
बचने की आशा के साथ।
डोर दे रखी है जीवन की,
परमेश्वर के हाथों में।
एक उड़ती पतंग सिखाती है,
ताल-मेल से रहना।
मर्यादाओं को भंग किए बिना,
स्वयं को बहारना व निखारना।
रुकावटें कितनी भी आएं,
पतंग बना लेती है अपने रास्ते।
संघर्ष करने पर ही सफलता है,
तभी उड़ती है पतंग आसमान में।
न तुलना कर, न घमंड कर,
पतंग तो अपनी ही चाल में उड़ती जाती है।
जीवन-यापन के मोल को,
बस उड़ने-उड़ने कह जाती है।
उड़ते रहो, आगे बढ़ते रहो,
हर बाधा को तोड़कर।
जीवन के उतार-चढ़ाव का,
सामना करो डटकर॥