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उसी तरह मेरी कविता में…

बबिता कुमावत
सीकर (राजस्थान)
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जिस तरह हवा में नमी घुली रहती,
उस तरह रूह में मेरे कविता घुली रहती।

जिस तरह हवाएँ साजिश करती चली जाती है,
उस तरह मेरी कविता उम्मीदों को ढांढस बंधाती है।

जिस तरह हवाओं के बादल दिशा बदल लेते हैं,
उस तरह मेरी कविता कुछ और कह के चली जाती है।

जिस तरह हवाएँ संघर्षों से टकराना सिखाती है,
उस तरह मेरी कविता खिदमतों को सहलाती जाती है।

जिस तरह हवाएँ प्रेम, मानवता बरसाती है,
उस तरह मेरी कविता मन की मुराद पूरी करती है।

जिस तरह हवाओं की फितरत खुशबू में बदल जाती है,
उस तरह मेरी कविता दिल की साफ बातें दबा जाती है।

जिस तरह हवाओं से बहार मस्त हो जाती है,
उसी तरह मेरी कविता से उलझनें खत्म हो जाती है।

जिस तरह हवाओं से खुशी का उपदेश मिलता है,
उस तरह मेरी कविता से दुनिया का तजुर्बा मिलता है।

जिस तरह हवाओं से मंजर बदल जाते हैं,
उस तरह मेरी कविता से गुलशन रिश्तों के सज जाते हैं॥