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ऋतुराज तुम्हारा स्वागत

रश्मि लहर
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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वसंत पंचमी: ज्ञान, कला और संस्कृति का उत्सव…

देख रहे ऋतुराज कनखियों
स्वप्न-चिरैया कुछ चहकी है,
गेंदा ऑंगन में बिखरा है
कुसुमित हो देहरी महकी है।

महुवा की सुरभित चंचलता
तन में भरती मिली उमंग,
कुछ मलंग गीतों को साधे
चले बजाते ढोल-मृदंग।

चितवन हुआ लजीला जाता
प्रियतम की बोली बहकी है,
गेंदा ऑंगन में बिखरा है
कुसुमित हो देहरी महकी है…।

प्रिया नेह की ओट लिए है
भोग पूजती मोदक के संग
टेसू दहक-दहक मोहित कर
छोड़े हर पग मोहक से रंग।

सिगड़ी सजी हुई अंगना में
सुधियों से दहकी-दहकी है।
गेंदा ऑंगन में बिखरा है
कुसुमित हो देहरी महकी है…॥