अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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हे एकदंत,
तुम सबकी आस
हे दयावंत।
गौरी के लाल,
करो सबका भला
करो कमाल।
है भुजा चार,
बरसाओ न कृपा
लीला अपार।
स्वागत करें,
चढ़े पान-सुपारी
मोदक धरें।
मूषकधारी,
संसार को चाहिए
दया तुम्हारी।
भक्तों की सुनो,
खुशियाँ बरसाओ
पाप को हरो।
आप विशेष,
करूँ नित पूजन
चाहूं न क्लेश।
पूजूँ चरण,
हर लो हर कष्ट
देना शरण।
देना खुशियाँ,
सबका प्रेम रहे
बने दुनिया।
हे विघ्नहर्ता,
आशीष देना सदा
अर्ज करता॥