ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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रखे है चाहतें बेशुमार,
जीस्त के पिटारे में
उड़े वक्त तोते,
आँख भिगोते लोग…।
शकों-सुबहात में जीते,
आजमाने की फ़िराक में
अपनों को खोते,
सपनों को ढोते लोग…।
पलकों की चादर तान,
आँसू सो जाए तब
हमदर्द बन दर्द बोते,
ज़ख्म नश्तर चुभोते लोग…।
दौलत वालों से राब्ता,
रिश्तों के दरम्यां
मुहब्बत को रोते,
दिल के छोटे लोग…।
नाख़ुदा बनने का शगल,
हक औरों की कश्ती कर
डूबते और डुबोते,
लगाते गोते लोग…।
लोग-लोग-लोग,
परिंदा बना दो मुझे।
प्रेम तिनका पिरोते,
कैसे-कैसे होते लोग…॥
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।