संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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माँ बिन…!
जिंदगीभर साथ रहकर भी,
पास नहीं रहता कोई
एक ही छत के नीचे,
रहकर भी किसी को
पहचानता तक नहीं कोई।
अंधेरे में रहने वालों के,
उजाले के लिए
जलता रहता है कोई,
हर किसी के लिए कहीं दूर
जागते रहता है कोई।
सभी आशा के दीप,
बुझने पर भी
रातभर जलता,
रहता है कोई
दूर किसी अंधेरे कोने से,
प्यार से निहारता
रहता है कोई।
वह कोई, कोई नहीं,
वह माँ है
वह माँ होती है…॥