ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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धर्मेन्द्र देओल को श्रद्धासुमन…
धरमेन्दर ‘शोले’ धरे, ‘गजब’ थे ‘धर्मवीर’,
‘जीवन-मृत्यु’ से परे, बसे दिल के कुटीर।
‘राकी रानी की प्रेमकहानी’,
मैं तुम्हें सुनाऊँ ‘राजा जानी’।
सच नाम ‘दोस्त’ का ‘सत्यकाम’ था,
‘चाचा भतीजा’ दो का दाम था।
‘बंटवारा’, ‘शालीमार’ का लिया,
‘दिल्लगी’ इक बार उसने भी किया।
‘लोहे’-सी देह ‘जागीर’ रखता,
‘गुड्डी’ नहीं ‘अनुपमा’ को तकता।
‘यमला पगला दीवाना’ बनकर,
‘इश्क पर जोर नहीं’ कह-कह कर।
‘क्षत्रिय’ ‘अपना’ डटा रहा तनकर,
‘रजिया सुल्तान’ को बोला चल हट पर।
‘घायल’ हुआ ‘कोहराम’ मचाया
की ‘बगावत’, ‘ड्रीमगर्ल’ लाया।
‘प्यार किया तो डरना क्या’ बोला,
‘चुपके चुपके’ राज सभी खोला।
‘काजल’ को ‘दिल ने फिर याद किया’,
‘जानी गद्दार’ नहीं काम दिया।
अभी ‘सीता और गीता’ लाओ,
‘बर्निंग ट्रेन’ में ब्याह रचाओ।
थी ‘यादों की बारात’ ‘तहलका’,
‘राम बलराम’ का आँसू छलका।
‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ कही,
‘आई मिलन की बेला’ थी नहीं।
‘अनपढ़’ थे ‘शिकार’ खुद ही बनकर,
आए ‘फूल और पत्थर लेकर’।
‘अलीबाबा और चालीस चोर’,
‘राजा जानी ने मचाया शोर।
‘मेरा गाँव और मेरे देश’ में,
आया क्यों ‘अपना’ केश-वेश में।
‘चरस’ घोल फिर उनको डुबोया,
‘शोला और शबनम’ में धोया।
‘मझली दीदी’ के किया हवाले,
‘जुगनू’ जैसे ‘बंदिनी’ बना ले।
‘आजाद’ रहा ‘नौकर बीबी का’,
नहीं बना कभी ‘गुलाम’ किसी का।
‘आदमी और इंसान’ को समझा,
ज़िंदगी ‘ज्वारभाटा’ में न उलझा।
वे ‘कागज का फूल’ तभी लाए,
‘सच्चा-झूठा’ का फर्क बताए।
की ‘प्रतिज्ञा’ प्रेम गीत गा के,
प्रेम ‘समाधि’ में प्रेम के धागे॥
परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।
