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गांधी के आदर्शों को ही आगे बढ़ा रहा संघ

ललित गर्ग
दिल्ली
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महात्मा गांधी बीसवीं शताब्दी में दुनिया के सबसे सशक्त, बड़े एवं प्रभावी नेता के रूप में उभरे। वे बापू एवं राष्ट्रपिता के रूप में लोकप्रिय हुए, वे पूरी दुनिया में अहिंसा, शांति, करूणा, सत्य, ईमानदारी एवं साम्प्रदायिक सौहार्द के साथ-साथ हिन्दू-संस्कृति, स्वदेशी, गौ-सेवा, स्वावलम्बन, स्वच्छता के सफल प्रयोक्ता के रूप में याद किए जाते हैं। वे एक रचनात्मक व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपने ही मूल्यों के बल पर देश को आजादी दिलाई, नैतिक एवं स्वस्थ मूल्यों को स्थापित किया। उनके द्वारा निरुपित सिद्धान्त आज की दुनिया की चुनौतियों एवं समस्याओं के समाधान करने के सबसे सशक्त माध्यम हैं लेकिन वक्त की विडम्बना देखिए कि गांधी को हम बार-बार कटघरे में खड़ा करतेे हैं और उनकी छवि को संकीर्ण दायरों में बांधने एवं धुंधलाने की कोशिश में कोई कमी नहीं छोड़ते। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज गांधी के आदर्शों को ही आगे बढ़ा रहा है।
गांधी जी देश में राष्ट्रीयता एवं हिन्दू-संस्कृति के पोषक थे। उन्होंने गौ-माता की रक्षा की खुलकर वकालत की। उनकी नजरों में धर्मांतरण राष्ट्र-विकास का बाधक तत्व था। वे हिन्दी भाषा के उत्थान एवं उन्नयन के लिए सम्पूर्ण जीवन प्रयासरत रहे। गाँधी जी ने कहा था कि-गाय बचेगी तो मनुष्य बचेगा। गाय नष्ट होगी तो उसके साथ, हमारी सभ्यता और अहिंसा प्रधान संस्कृति भी नष्ट हो जाएगी। महात्मा गाँधी की दुहाई देकर देश चलाने वाले उन्हीं के आदर्शों का खून कर रहे हैं। जिन गाँधी जी की तर्ज पर जगह-जगह आंदोलन होते हैं उनमें आम जनता का, जीवदया, स्व-संस्कृति, स्वदेशी का हिस्सा कहीं नजर नहीं आता है। गाँधी जी ने गौमाता को पूजने का आदर्श प्रस्तुत किया था, लेकिन इसके विपरीत उनको पूजने वाली सरकारें गौमाता को कत्लखाने भेजे पर आमादा है। इस प्रकार की दानवी मानसिकता में उसकी संवेदना कहीं गुम हो गई है। स्वार्थी मनुष्य न जाने क्या करेगा ?
गांधी जी धर्मांतरण के खिलाफ थे। उन्होंने गीता, रामायण, रामचरित मानस का गहन अध्ययन किया। उन्होंने गीता पढ़ी तो पाया कि सब कुछ इसमें विद्यमान है, सब धर्मों का सार है। जिन बातों के कारण मैं औरों के धर्मों से प्रभावित हुआ था, उन सबकी शिक्षा इसमें मिलती है। घर की चीजों को हम नहीं देखते, बाहर की चीजों को ही देखते हैं, यही हमारी सबसे बड़ी भूल है। हर आदमी को अपनी चीजों को और अपने घर को पहले गहराई से देखना चाहिए। इसके पश्चात गांधी जी के जीवन पर हिन्दू धर्म एवं संस्कृति का व्यापक प्रभाव पड़ा। असल में गांधी हिन्दूवादी ही थे, जिन्होंने अपनी अन्तिम साँस ‘हे राम!’ से ली हो, सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है वे कितने हिन्दू-संस्कृति को मानने वाले थे।
आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिन कार्यक्रमों एवं गतिविधियों पर बल दे रहा है, गांधी जी ने भी उन्हीं को बल दिया था। संघ के स्वयंसेवक भगवा ध्वज के प्रति अविचल निष्ठा रखते हुए उन सभी जीवन मूल्यों के प्रति आस्थावान रहते हैं, जिनको गांधी ने अपने जीवन में जिया।
शाखा पद्धति गांधी के खादी और चरखे की तरह जीवन शैली और विचार परिवर्तन का सामान्यतम नागरिक को स्पर्श करने वाला आंदोलन है। गांधी जी शाखा के अनुशासन से अत्यंत प्रभावित हुए थे। गांधी और उनके अनुयायियों की एक विशिष्ट वेशभूषा थी, जिनसे ही वे पहचान में आ जाते थे। संघ के स्वयंसेवकों की भी एक विशिष्ट वेशभूषा, गणवेश और व्यवहार शैली है जिससे वे सबसे अलग अपनी विशिष्टताओं से पहचान में आ जाते हैं। गौ, स्वदेशी, संयमित आरोग्य वर्धक जीवन शैली, राष्ट्रीय विषयों पर हिमालय सामान दृढ़ता, सभी मतावलम्बियों के साथ भारत भक्ति के मूल अधिस्थान पर मैत्री और सहयोग का भाव, स्वदेशी मूल्यों पर आधारित शिक्षा का विश्व में सबसे बड़ा विद्या भारती उपक्रम, अस्पृश्यता के दंश से आक्रांत अनुसूचित जातियों के मध्य समरसता का अभियान आदि संघ के प्रकल्प गांधी के ही प्रकल्प हैं।
स्वावलंबी गाँव आर्थिक विकेंद्रीकरण का ही रूप है, जिसका आधार स्थानीयता एवं उस पर आधारित प्रौद्योगिकी संसाधन है। इसका उद्देश्य लोगों की सेवा करना है। इस व्यवस्था में उत्पादन, उपभोग स्थानीय होने के कारण मालिक, श्रमिक और उपभोक्ता तीनों एक ही हो जाते हैं, यही इसकी विशिष्टता है। गांधी जी के लिए सत्य व अहिंसा जीवन का मूलभूत नियम होने के कारण आर्थिक विचार भी इसी उद्देश्य की प्राप्ति के साधन हो जाते हैं। आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वावलम्बी अर्थ-व्यवस्था पर जोर दे रहे हैं, यह गांधी के सिद्धान्तों पर ही आधारित है। महात्मा गांधी ने हस्तशिल्प व कुटीर उद्योग को हमेशा बढ़ावा दिया है। उनके ग्राम स्वराज का सपना था कि, गाँव के कुटीर, लघु और कृषि उद्योग तेजी से आगे बढ़े। अगर देश का हर नागरिक सोचे कि जो वह स्वदेशी उत्पाद इस्तेमाल कर रहा है, उससे न केवल देश की कंपनी का फायदा होगा, बल्कि देश में ज्यादा से ज्यादा रोजगार उत्पन्न होंगे, तो देश तेजी से आत्मनिर्भर की ओर बढ़ेगा।
आज के संदर्भ में हर किसी को महात्मा गांधी के स्वच्छता संबंधी विचारों को आत्मसात करना चाहिए। उनके जीवन में स्वच्छता इतना महत्वपूर्ण थी कि, वह इसे राजनीतिक स्वतंत्रता से भी ऊपर मानते थे। वह मानते थे कि स्वच्छ रहकर ही हम खुद को स्वस्थ रख सकते हैं और स्वस्थ राष्ट्र ही तेजी से प्रगति कर सकता है। उनका मानना था कि स्वच्छता को अपने आचरण में इस तरह से अपना लेना चाहिए कि वह आदत बन जाए।
स्वदेशी, पंचायती राज्य व्यवस्था और स्वच्छता के अलावा महात्मा गांधी के और भी कई ऐसे विचार हैं, जो आज के संदर्भ में प्रासंगिक हैं। इसमें पर्यावरण एवं सतत विकास, महिलाओं का सम्मान, सत्य और अहिंसा आदि शामिल है। गांधी को आज के समय में समझना हो तो स्वयंसेवक के साथ सेवा बस्तियों में जाइए, शाखा में देशभक्ति के गीत गाइए, संघ प्रेरित गौशालाओं में गौ सेवा करिए, तब गांधी समझ में आ जाएंगे।
गांधी के निर्वाण दिवस पर उनकी पावन स्मृति के साथ-साथ जरूरी है कि, हम उन्हें पुनर्जीवित करें, क्योंकि गांधी जी का पुनर्जन्म ही समस्याओं के धुंधलकों से हमें बाहर कर सकता है। स्व-पहचान एवं स्व-संस्कृति को जीवंत कर सकता है। इसलिए ही गांधी जी की जरूरत आज पहले से कहीं अधिक है। गांधी जी की प्रतिमा के सामने आँख मूंदकर कुछ क्षण खड़े रहकर अपने आपको बड़ा राजनीतिज्ञ बताने वाले यह कहने का साहस करेंगे कि वे गांधी जी के बताए रास्तों पर क्यों नहीं चल रहे हैं ? भले ही हमारे ही लोग गांधी को कमतर आंक रहे हो, पर वे ही दुनिया में शांति की स्थापना के माध्यम बनेेंगे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से ऐसा होता हुआ दिख रहा है, न केवल गांधी का पुनर्जन्म हो रहा है, बल्कि समूची दुनिया शांति और सह-अस्तित्व के लिए भारत की ओर आशाभरी निगाहों से निहार रही है।

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