ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
**************************************
ये आलम क्यों है गर्द भरा,
इक रंगी लगता जर्द भरा
रोका सबने जाना न वहाँ,
गुबार फूटा है दर्द भरा।
लहजा, लफ़्ज़ों से दूर रहा,
खूब बहाने के किस्से हैं
देखो, न दरार न टूटा,
दिल होते ही दो हिस्से हैं
झुलसा था लफ़्ज़ों की खेती,
पर ताब हवा लिए सर्द भरा
गुबार फूटा है दर्द भरा…।
पल दो पल जीवन बोल गया,
यह फ़क़त बहाना अच्छा था
बातें न किताबी समझेगा,
ये दिल जिगर अभी बच्चा था।
वह बना रहा पर मर्द खरा,
गुबार फूटा है दर्द भरा…॥
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।