आचार्य संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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एनसीआर-राजधानी में घना था कुहरा धुँध,
ठंडे में सन्नाटा पसरा, प्रदूषित ओस की बूँद
तेज रफ्तार थे ट्रक, बस, कारें धुंध ने ली थी आँखें मूंद,
एक्स्प्रेस-वे पर दुर्घटना हो गई लड़ी गाड़ियाँ अंधाधुंध।
राजधानी एक्सप्रेस में मैं बैठा था आँखें हो गई कुंद,
शीत लहर से सभी त्रस्त थे, खेल रहे थे बाल मुकुंद,
रेल ५ घण्टे देर, कई सांसद व समर्थकों की थी झुंड,
खुद को सांसद समझ बातें करते अतार्किक सूंड।
मैं भी बैठा उसी बोगी में था जैसे गाज़र कोई मुलुंड,
एक बाबा आया बोगी के अंदर लेकर खोपड़ी नर मुंड
सिद्ध पुरुष साधु जैसा वो कपड़े बंडे-बुण्ड,
पढ़ने लगा भूत, भविष्य सत्य, जस हाथी सूँघे सूंड।
उसके आगे सब झुक गए, वो समझा सबको मूढ़,
आधे से ज्यादा बोगी मे बैठे थे कुछ बुजुर्ग व बूढ़
आधे तो कुछ अधिक पढ़े थे, आधे को अंदर कुढ़,
सबको चूना लगा गया वो औघड़ संत विमूढ़।
कुछ तो थोड़ी सिद्धि होगी जिस पर पैसा लिया वसूल,
हम सब भी भूत भविष्य में स्वयं को खुद गए भूल,
ऐसे बाबा की बातें होती अक्सर हैं, उल-जुलूल,
लेकिन सिद्ध-प्रसिद्ध संत सम्मान में चरणों में दो फूल।
घना हो कुहरा जीवन ठहरा, हो अपने कुछ तो उसूल,
सत्य सनातन संस्कृति में संत- महात्मा के अद्भुत त्रिशूल।
जीवन के उद्देश्य के बिना, जीवन स्वयं का शूल,
ज्ञान-बुद्धि की खोज में खपकर पाओ कमल का फूल॥
परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे आचार्य संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। सम्मान-पुरस्कार में आपको महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान मिले हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”