राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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वो घर से बाहर नौकरी करती थी,
वहां एक कमरा भी किराये पर ले लिया
मगर-
एक दिन की भी छुट्टी होती,
वह घर आ जाती।
मैं कहती-एक दिन के लिए,
तू भागी-भागी क्यों आती है ?
सवेरे जल्दी उठकर,
बस पकड़ती है।
ये भाग-दौड़ क्यों करती है ?
वैसे भी तूने किराये पर कमरा लिया है,
एक दिन की छुट्टी में वहीं रह लिया कर
घूम-फिर लिया कर,
खा-पी लिया कर।
वह मुस्करा कर कहती-
“मुझे घर की याद आती है,”
फिर हाथ हिला कर चली जाती।
एक दिन शादी हो गई,
अब शहर एक ही हो गया।
जब भी छुट्टी होती,
वह मुझसे मिलने जरूर आती
थोड़ी देर बाद घर जाने की तैयारी शुरु हो जाती,
“मुझे घर जाना है।”
मैं कहती-“घर कहीं भागे थोड़े ही जा रहा है,
तू छोड़ कर आई है वहीं मिलेगा।
आजकल की लड़कियाँ इतना कहां सोचतीं हैं ?”
वह कहती-“अम्मा!
वे घर बनाती नहीं,
सजाती हैं।
वे चारदीवारी के घर में रहतीं हैं,
बंगला, गाड़ी, पिक्चर हॉल
किटी पार्टी, रेस्टोरेंट और मॉल,
इनमें उनकी आत्मा बसती है
लेकिन मेरी तो मेरे घर में बसती है,
इसलिए जल्दी रहती है।”
यह कहकर,
वह मुस्करा कर
हाथ हिला कर चली जाती॥
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।