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चिकित्सकों को दोष देने के बजाय जागरूकता जरूरी

अमल श्रीवास्तव 
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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आज के दौर में लगभग सभी लोगों को चाहे वह अमीर हो या गरीब, कृषक हो या मजदूर, नेता हो या व्यापारी, नौकर हो या मालिक, अधिकारी हो या कर्मी, संत हो या फकीर, को चिकित्सकों की जरूरत पड़ती है, और यह भी कड़वा सच है कि लगभग सभी लोग चिकित्सकों को भला-बुरा कहते हैं। विशेषकर उनके रूखे व्यवहार और लंबे-चौड़े चिकित्सा बिल से लगभग सभी असंतुष्ट रहते हैं।
आखिर मृत्यु व जीवन तो ईश्वर के हाथ में है, फिर चिकित्सक के पास जाने की क्या जरूरत ?
इसका सीधा-सा उत्तर है कि, मृत्यु से पहले जीना भी तो है, बीमारी व तकलीफ को तो चिकित्सा से ही ठीक किया जा सकता है, इसलिए चिकित्सक के पास तो जाना ही पड़ेगा। भगवान के बाद यदि कोई जीवन बचाता है तो वह चिकित्सक ही तो है।
कहने का तात्पर्य यह है कि, सभी एकमत से यह स्वीकारते हैं, कि चिकित्सक की अहमियत हमारे जीवन में बहुत है। फिर उनकी बुराई करने की जगह मरीज, उनके परिवारजन व चिकित्सक और उनके अधीनस्थों के बीच मित्रता व सौहार्द कैसे हो, इसका प्रयास क्यों नहीं करते ?
चिकित्सा क्षेत्र में आयुर्वेद, एलोपैथी, होमियोपैथी , प्राकृतिक चिकित्सा, वैकल्पिक चिकित्सा इत्यादि अनेक माध्यम उपलब्ध हैं, लेकिन यदि मनुष्य जागरूक व होशपूर्वक स्वस्थ दिनचर्या अपनाए, योग-ध्यान-व्यायाम करें व स्वास्थ्यकर जैविक खाए तथा रितभुक, मितभुक, हितभुक का ध्यान रखे तो चिकित्सक के पास जाने की जरूरत कम ही पड़ेगी। इसीलिए कहा गया है कि-‘पंचगव्य और सात्विक भोजन का जो सेवन करते हैं। महामारियों के प्रकोप से सदा सुरक्षित रहते हैं।’ परन्तु स्वयं की लापरवाही को कोई क्यों दोष देगा ? स्वयं की गलती से बीमार पड़े और गाली चिकित्सक को दे रहे हैं!
एक बात और-आजकल सीजेरियन प्रसूति का चलन कुछ ज्यादा ही चल रहा है। चूंकि पहले स्त्रियां स्वास्थ्यकर मोटा अनाज फल सब्जी खाकर खूब मेहनत करती थी, शरीर लचीला होता था तो सामान्य प्रसूति हो जाती थी। आजकल शारीरिक श्रम बहुत है नहीं, योग-व्यायाम होता नहीं। तैयार भोजन व तला-भुना अधिक खाने के कारण स्त्रियों के शरीर अकड़े रहते हैं, फिर इनकी सामान्य प्रसूति कैसे सम्भव है ? इसके अलावा प्रसव पीड़ा से हर महिला बचना चाहती है, तो ऐसे में सीजेरियन प्रसूति का चलन बढ़ता ही जा रहा है।
जहां तक चिकित्सकों द्वारा लूटने या रूखे व्यवहार की बात है तो क्या, अन्य व्यवसाय या नौकरी के लोग सबकी ईमानदारी का प्रमाण-पत्र दे सकते हैं ?
सभी पंथ-मजहब में, सभी व्यवसाय-धंधे में, सभी विभागों मे अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग हैं। कोई पेशा बुरा नहीं होता, कुछ लोग हो सकते हैं।
चिकित्सा श्रेष्ठ जनसेवा का माध्यम है। चिकित्सक बनने के लिए बहुत पढ़ाई ,मेहनत व पैसा लगता है। हमें भी उनका सम्मान करना चाहिए। कोविड में कितने चिकित्सकों ने दूसरों का इलाज करते हुए अपनी जान गंवाई, इसका भी हरदम ध्यान रखना चाहिए।
आधी ग्लास भरी व आधी खाली है, कुछ चिकित्सककों की गलत नीयत और कुछ बड़े अस्पतालों के व्यवसायिक रुख के कारण सभी चिकित्सकों का अपमान करना उचित नहीं है। यानी सबको लुटेरा कहना उचित नहीं है। जब जीवन संकट में होता है, तो वही चिकित्सक अपने प्रयासों से हमारे अपनों की जान बचाता है। अतः हमें अहसान फरामोश नहीं होना चाहिए।
हमें चिकित्सक व रोगी के बीच मित्रता का भाव बढ़ाना चाहिए। अच्छे चिकित्सकों को ढूंढकर जागरूकता शिविर लगवाना चाहिए, जिससे लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हों और बीमारी का समय पर इलाज करवा सकें।
जैसे हम जवान व किसान का सम्मान करते हैं, वैसे ही जीवन रक्षक चिकित्सकों का भी सम्मान करना चाहिए। कोई भी अच्छा व इंसानियत युक्त चिकित्सक कभी भी नहीं चाहता कि उसका मरीज मरे, वो बेचारा तो हर सम्भव प्रयास करता है उसे जीवन देने का…। चिकित्सक भी हमारी तरह इंसान है, उसमें भी जान है, वह भी थकता है और वह भी सम्मान चाहता है।
हम सभी चिकित्सक समूह से मित्रता और अच्छे सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण करें। लूटपाट न हो, उसके लिए जागरूकता अभियान चलाएं, दोषारोपण करने की जगह मिलकर समाधान ढूँढें।
इसके बावजूद भी अगर कहीं कुछ अनैतिक गतिविधियां, लूट-खसोट होती है तो कानून का सहारा लेकर सख्ती से खात्मे का हर संभव प्रयास करना चाहिए।
याद रखिए, चिकित्सक भगवान के बाद वह देवदूत है जो हम सबकी जान बचाते हैं। चिकित्सकों को भी चाहिए कि वे अपने इस पवित्र पेशे को अपने रुष्ट व्यवहार व धन की प्रधानता के कारण कलंकित होने से बचाएं।

परिचय–प्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।

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