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चीन कर रहा पाक का नुकसान

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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चीन कहता है कि पाकिस्तान और उसकी दोस्ती ‘इस्पाती’ है, लेकिन चीन ही उसका सबसे ज्यादा नुकसान कर रहा है। आतंकवादियों को बचाने में चीन पाकिस्तान की मदद खम ठोंक कर करता है और इसी कारण पाकिस्तान को पेरिस की अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था (एफएटीएफ) मदद देने में देर लगाती है। इस समय पाकिस्तान भयंकर संकट में फंसा हुआ है। अतिवर्षा के कारण डेढ़ हजार लोग मर चुके हैं और लाखों लोग बेघर-बार हो चुके हैं। मँहगाई आसमान छू रही है। बेरोजगारी ने लोगों के हौंसले पस्त कर दिए हैं। प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ इस आपदा का सामना बड़ी मशक्कत से कर रहे हैं। वे बाढ़-पीड़ितों की मदद के लिए दुनिया के राष्ट्रों के आगे झोली फैला रहे हैं लेकिन चीन ने अभी-अभी फिर ऐसा कदम उठा लिया है, जिसके कारण पाकिस्तान बदनाम भी हो रहा है और उसे अंतरराष्ट्रीय सहायता मिलने में भी दिक्कत होगी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने लश्करे-तयबा के कुख्यात आतंकवादी साजिद मीर को ज्यों ही अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने की कोशिश की, चीन ने उसमें अड़ंगा लगा दिया। यह प्रस्ताव भारत और अमेरिका लाए थे। सुरक्षा परिषद ने जब-जब पाकिस्तान के इन लोगों को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करके इन पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाने की कोशिश की, चीन ने उसका विरोध कर दिया। अब्दुल रउफ अजहर और अब्दुल रहमान मक्की के मामले में भी चीन ने यही किया। चीन यही समझ रहा है कि, ऐसा करके वह पाकिस्तान का भला कर रहा है लेकिन पाकिस्तान की सरकार को पता है कि ऐसा होने से पाक का नुकसान होने की पूरी संभावना है। इस वक्त अमेरिका ने पाकिस्तान को एफ-१६ युद्धक जहाजों की मदद क्यों भेजी है ? क्योंकि उसने काबुल स्थित अल-क़ायदा के आतंकवादी ईमान-अल-जवाहिरी को मारने में अमेरिका की मदद की थी। यदि भारत पर हमला करनेवाले आतंकवादियों की चीन इसी तरह रक्षा करता रहेगा तो, पाकिस्तान को मदद देने में पश्चिमी राष्ट्रों का उत्साह ठंडा पड़ सकता है। पाकिस्तान के लिए यह कितनी शर्म की बात है कि, चीन के उइगर मुसलमानों पर चीन इतना भयंकर अत्याचार कर रहा है और पाकिस्तान के सारे नेता उस पर चुप्पी मारे बैठे हुए हैं। चीन बहुत चालाकी से पाकिस्तान का दोतरफा नुकसान कर रहा है। एक तो पाकिस्तान को मिलनेवाली पश्चिमी मदद में चीन अड़ंगा लगा रहा है और दूसरा, उइगर मुसलमानों पर चुप्पी साधकर पाकिस्तान इस्लामी राष्ट्र होने के अपने नाम को धूल में मिला रहा है। साजिद मीर को मरा हुआ बताकर क्या पाकिस्तान अपने-आपको झूठों का सरदार सिद्ध नहीं कर रहा है ? बेहतर तो यह हो कि शाहबाज शरीफ हिम्मत करें और संघ का साथ दें। वे पाकिस्तान को बदनामी और कलंक से बचाएं।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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