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छुपा गए बात जो छुपानी थी

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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लोहे की जंजीरों के बंधन भी,
जिन वीरों को न बांध सके
वे दुर्ग भी लांघे सुरमाओं ने, जिनको कोई भी न लांघ सके।

फिर पूछती है नई पीढ़ी कि,
पुरखों ने आखिर क्या किया ?
ये ऐड़े क्या जानें कि शहीदों ने,
जान गंवा करके क्या दिया ?

मिला हो जो बिन मेहनत के,
उसका मोल कोई क्या जाने ?
अंग्रेजियत के रंग में रंगे,
इतिहास का झोल वे क्या जाने ?

काम किया किसी और ने, वाह-वाही कोई दूसरा लूट गया
गोरे गए तो कालों ने थामा,
पुरखों का सपना ही टूट गया।

अंग्रेज गए, अंग्रेजी तो रही न,
तो कालों ने क्या नया किया ?
सत्ता हस्तांतरण ही घटित हुआ, आजादी में क्या नया दिया ?

शिक्षा, न्याय और शासन विदेशी, यही तो असल गुलामी थी
ये तो आज भी अंग्रेजी में चलते हैं, भारत से यही छुड़ानी थी।

विज्ञान की ओट में इतिहास छुपाया,
कहानी जो बतानी थी।
वे कर गए महिमामंडन अपना, छुपा गए, बात जो छुपानी थी॥