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जिस आँगन नहीं जन्मती बेटियाँ…

स्मृति श्रीवास्तव
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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ओस की बूंदों-सी,
बाग में कलियों-सी
फूल की सुगंध-सी,
होती है बेटियाँ
घर को चमन बनाती हैं बेटियाँ।

गंगा की धारा-सी,
चाँद की चाँदनी-सी
सूरज की किरणों-सी,
होती है बेटियाँ
घर को सजाती है बेटियाँ।

पायल की छुनछुन-सी,
गीत की तान-सी
कोयल की कूक-सी,
चहकती हैं बेटियाँ
घर की रौनक होतीं हैं बेटियाँ।

वीणा की तान-सी,
दुर्गा की शान-सी
देवी का अवतार ही,
होतीं हैं बेटियाँ
घर को मंदिर बनातीं है बेटियाँ।

बिन काजल की आँख-सा,
बिना रंगों के फाग-सा।
बिन मूर्ति के शिवालय-सा,
लगता है वो अँगना…
जिस आँगन नहीं जन्मती बेटियाँ॥

परिचय : स्मृति श्रीवास्तव का जन्म १ नवम्बर १९७३ को कोलारस (जिला- शिवपुरी) में हुआ है। वर्तमान निवास स्थान इन्दौर में है। शिक्षा एम.ए. (इतिहास) है,जबकि पेशा परामर्श एवं लेखन है। गतिविधि के रूप में ५ साल से इंदौर लेखिका संघ और कई साहित्यिक समूह से जुड़ी हुई हैं। राष्ट्रीय कहानी संग्रह,लघु कथा कहानी संग्रह,साझा काव्य संग्रह के अलावा पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ छप चुकी हैं।

 

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