सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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जीवन तो है एक पहेली
समझ न इसको पाऊँ,
जितना भी मैं कोशिश करती
और उलझती जाऊँ।
चित्त नहीं परिपक्व विविध
विधि घेर लिया करुणा ने,
सभी इंद्रियाँ विभ्रमित करतीं
उलझा मन तृष्णा में।
तेजहीन मैं क्या उत्तर दूँ
ज्ञान है मुझमें सीमित,
ऊपर-नीचे दायें-बायें
माया करती मोहित।
पता नहीं कल क्या होना है
चिंता यही सताए,
कल की सोच-सोच कर मनवा
आज को जी न पाए।
श्रांत आज मन मेरा कहता
हित अपना खोजो तुम,
श्रवण चक्षु और चंचल मन को
विषयों से मोड़ो तुम।
अन्तर्मन की ज्योति जला कर,
मन से अपने बोलो।
तिमिर आवरण सकल हटा कर,
लोचन अपने खोलो॥
