डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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क्यों खोए हो अवसादित मन,
क्यों व्यर्थ वक्त कर जाते हो ?
कर रही प्रतीक्षा नयी राह,
बीती बातें पछताते हो।
जो बीत गई, वो बात गई,
क्यों दर्द दिलों दे जाते हैं
सुनहरी भोर अरुणिम किरणें,
आरम्भ नवल पथ जाते हो।
तज सकल गम बीते जख्मों,
क्यों न धेय नवल बनाते हो
क्यों बार-बार बीते लम्हों,
गमगीन तिमिर खो जाते हो।
देखो विहंग उन्मुक्त गगन,
क्यों उड़ानें न भर जाते हो
हो उद्यत नव जीवन मंगल,
क्यूँ न यायावर मुस्काते हो।
तज दर्द दिली बीती बातों,
सोपान ध्येय चढ़ जाते हो
आह्वान समय निर्माणक नव,
जीवन्त कीर्ति रच पाते हो।
है मिटा अंधेरा भूत काल,
क्यों सीख नहीं ले पाते हो
फिर वही जोश बन कर्मवीर,
नवयौवन सरिता बह जाते हो।
है मीत कलम बन उद्बोधन,
नवगीत सुपथ रच जाते हो
साफल्य मुदित फिर हो जीवन,
विश्वास नहीं रख पाते हो।
नवांकुर समझ खुद नव पादप,
कोमल पत्र क्यों न बनाते हो
होगी कलियाँ पा शनैः-शनैः,
युव कुसुमाकर खिल सकते हो।
आयाम नया आगाज नया,
अरमान सुपथ खुद बढ़ने दो
क्यों पीछे मुड़ कर देख रहे,
सम्मान सुयश गढ़ सकते हो।
अरमान अटल फलदान सफल,
सुख चैन शान्ति पा सकते हो।
परमार्थ निकेतन सार्थ कर्म,
बीती बातें क्यों पड़ते हो॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥