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डाक का महत्व आज भी कायम

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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 विश्व डाक दिवस (९ अक्तूबर) विशेष….

भारतीय डाक का इतिहास करीब डेढ़ सौ साल पुराना है। शुरुआत ब्रिटिश हुकूमत के दौर में हुई थी। ये डाक सेवा अंग्रेजों ने भारत में शुरू की थी। साल १७६६ में लार्ड क्लाइव ने पहली बार भारत में डाक व्यवस्था को शुरु किया था, जबकि विभाग के रूप में १ अक्तूबर १८५४ में स्थापना की गई। भारत का पहला डाकघर कोलकाता में १७७४ में वारेन हेस्टग्सिं द्वारा स्थापित किया गया, जिसके बाद १७८६ में मद्रास में डाकघर का निर्माण हुआ। १७९३ में बम्बई प्रधान डाकघर की स्थापना हुई तो १८६३ में रेल डाक सेवा का प्रारंभ हुआ।
तकनीकी युग में हम सभी मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं, और स्मार्ट फोन मानव जीवन का अभिन्न अंग बन गया है, पर २००४ तक हर भारतीय डाक विभाग पर निर्भर था। ऐसा नहीं है कि डाक का अस्तित्व समाप्त हो गया। बदलते परिवेश के साथ डाक विभाग में भी बदलाव कर दिए गए हैं।

पहले पोस्ट कार्ड, अंतर्देशीय पत्र, लिफाफे का इंतज़ार रहता था। जबसे मोबाइल का चलन हुआ, पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय पत्र और लिफाफे का आकर्षण कम हो गया, पर उनका अहसास अजीब होता था।
डाक विभाग में अब सभी प्रकार के ऑन
लाइन कार्य होने लगे हैं। जैसे-स्पीड पोस्ट, स्पीड कुरियर आदि। पहले डाक द्वारा हम पत्र भेजा करते थे और मनीऑर्डर, टेलीग्राम आदि की सहायता लिया करते थे, लेकिन आज के समय में इन्टरनेट, कुरिअर से वस्तुओं को भेज सकते हैं व मिनटों में संदेश भी प्राप्त कर सकते है। कहना गलत नहीं होगा कि, डाक का महत्व आज भी है और इसी को दर्शाने के लिए प्रत्येक वर्ष ‘डाक दिवस’ मनाया जाता है।
भारतीय डाक के कर्मचारियों को समर्पित करने के लिए यह दिवस विश्व में ९ अक्टूबर को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य ग्राहकों को इसके प्रति जागरूक बनाना है।
भारत में पहली बार चिट्‌ठी पर टिकट लगाए जाने की शुरुआत १८५२ में हुई। इन दिनों महारानी विक्टोरिया के चित्र वाला टिकट १ अक्टूबर सन १८५४ में जारी किया गया, जबकि १८८० में मनी ऑर्डर, १९७२ में पिन कोड और १९८६ में स्पीड पोस्ट की सेवा प्रारम्भ की गई। ऐसे ही २००० में ग्रीटिंग पोस्ट, २००१ में इलेक्ट्रॉनिक फण्ड ट्रान्सफर सेवा, २००२ में इन्टरनेट आधारित ट्रैक एवं टैक्स सेवा की शुरुआत सहित २००३ में बिल सेवा प्रारम्भ करते हुए २००४ में ई-पोस्ट सेवा की शुरुआत भी प्रारंभ की गई।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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