प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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पहले तो सब सुख से बीता, रोग कभी भी पास न आया।
आकर जाती नहीं बुढ़ाई, अब हर दिन दु:ख पाती काया॥
बचपन में सब खुशहाली थी, दर्द नहीं कोई ग्रस पाया,
आलस्य, पीड़ा, मायूसी ने, कभी नहीं किंचित भटकाया।
मैंने गति में रहकर नित ही, अपना यौवन काल बिताया,
उल्लासित रहकर सुख पाया, मन मेरा हरदम लहराया।
पर सच्चाई का हरदम ही, सब पर है साया लहराया,
आकर जाती नहीं बुढ़ाई, अब हर दिन दु:ख पाती काया…॥
शैशव में आनंद भरा था, यौवन जोश लिए बीता है,
वृद्धावस्था में कठिनाई, ग़म ने सबको अब जीता है।
शेष न अब वैसे अच्छे दिन, आवेगों का घट रीता है,
आया है अभिशप्त बुढ़ापा, हरण हुई सुख की सीता है।
कैसे गाऊँ गीत सुहाने, तन-मन ने सब तेज गँवाया,
आकर जाती नहीं बुढ़ाई, अब हर दिन दुख पाती काया…॥
रहता यौवन मस्ती रहती, हर कोई रहता इतराया,
गर्म ख़ून बहता तब रग में, नहीं कभी कोई घबराया।
दुनिया के हालात न जाने, यौवन ने तो है भरमाया,
तन के बल ने साहस सौंपा, हरदम ही उजलापन पाया।
ढलता सूरज ढल जाता है, अँधियारा ही हिस्से आया,
आकर जाती नहीं बुढ़ाई, अब हर दिन दुख पाती काया…॥
कभी नहीं बचपन में सोचा, यौवन इक दिन खो जाएगा,
तेजी से गतिशील बुढ़ापा, सारी मस्ती धो जाएगा।
काया बेहद ढीली होगी, यौवन तब तो रो जाएगा,
यौवन जाते-जाते तब तो, पीड़ाओं को बो जाएगा।
अब लगता है यौवन है बस, देखो एक छलावा, माया,
आकर जाती नहीं बुढ़ाई, अब हर दिन दुख पाती काया…॥
रोग घेरते, मातम करते, गीत दर्द का लगे बुढ़ापा,
कष्टों में गिरकर तब मानव, खो देता है अपना आपा।
कब आएगा पास बुढ़ापा, कोई कभी नहीं है मापा,
सुख में रहकर नहीं सोचता, दु:ख का पड़ जाता पर छापा।
पता नहीं यह किसकी करनी, वृद्धावस्था क्योंकर लाया,
आकर जाती नहीं बुढ़ाई, अब हर दिन दु:ख पाती काया…॥
परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।