प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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मात-पिता प्यासे मरे, अब कर रहे हैं तर्पण,
यह तो ढोंग ही दिखता है, दिखावा है अर्पण।
जब जीवित थे मात-पिता, तब ही सब ज़रूरत थी,
आज तो यह सारी दिखावे से भरी हुई वसीयत है।
जीवित की सेवा का ही तो होता सच्चा मोल है,
बाद में दिखती कर्मों में लम्बी, गहरी पोल है।
अब मात-पिता जल कैसे पी सकेंगे, सोचो,
अब मात-पिता कैसे भोजन कर सकेंगे, बाल नोंचो।
अब तो श्राद्ध करना पूरी तरह से मिथ्या, बेमानी है,
यह तो पाखंड भरी हुई एक निरर्थक कहानी है।
सेवा, सुश्रुषा जीवित अवस्था की ही बस सच्ची है,
नहीं तो सब कुछ बेकार, झूठी और कच्ची है।
जीवन में तो मात-पिता होते हैं देव समान,
इसलिए उनके जीवित रहते में ही करो उनकी सेवा-सम्मान।
मात-पिता प्यासे मरे, अब कर रहे तर्पण,
ज़रा देखो संतानों तुम, आज तो सच का दर्पण॥
परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।