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तुम्हारे बिना

पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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डॉ. अर्जुन जब से कानपुर देहात के जिला अस्पताल में सीएमओ बन कर आए हैं, उनका सामाजिक दायरा भी बढ़ गया है। चूंकि, वह सरकारी पद पर कार्यरत थे, इसलिए वह लोगों से उनके प्रायवेट कार्यक्रमों से अधिकांशतः हाथ जोड़ कर माफी मांग लेते थे, लेकिन फिर भी किन्हीं कार्यक्रमों में मना करते-करते भी जाना उनके लिए मजबूरी बन जाता है।ऐसे ही वृद्धाश्रम के वार्षिक समारोह में वह मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे। जैसा कि अन्य समारोह में होता है-दीप प्रज्जवलित करना, माल्यार्पण, सम्मान-पत्र के बाद मुख्य अतिथि के दो शब्द… “बेटे कभी भी माँ- बाप के ऋण से उऋण नहीं हो सकते, इसलिए यह फर्ज बनता है कि वह अपने माँ-बाप की सेवा करें… समाज के लिए वह बेटे एक बदनुमा दाग हैं, जो अपने माँ-बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ कर खुद ऐश की जिंदगी जीते हैं….” इन शब्दों को बोलते-बोलते वह फफक कर रो पड़े…। उनकी आँखों से झर-झर कर आँसू बह निकले थे…। वहाँ बैठे लोग उनकी जय- जयकार करने लगे थे, लेकिन उनके कान में तो अपने पिता के स्वर गूँज रहे थे, “बेटवा, तुम्हारे बिना हम लोग यहाँ कैसे जिंदा रह पाएंगें…?”

यहाँ से हजारों मील दूर वह हर पल वृद्धाश्रम में उनकी बाट जोह रहे हैं। उनकी आँखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी।