श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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हे कन्हैया तेरे ही भरोसे, अब मैं छोड़ चुकी हूँ नैया,
जल्दी आओ हे कान्हा, बीच भंवर में फंसी है नैया।
मैं विनती करती हूॅ॑, अरज सुन लो हे हमारे सरकार,
हे केशव करिए मेरी नैया, आकर के आप उस पार।
हे प्राणदाता, फंसी है नाव हमारी बीच मझधार में,
तेरे सिवा कोई नहीं बचाने वाला इस भरे संसार में।
हे नाथ चल पड़ी है नाव मेरी, देखो अपने अन्तर नयन से,
हो जाऊॅ॑गी मैं भंवर से पार, मात्र स्पर्श आपके चरण से।
तुम्हीं हो माता-पिता, तुम्हीं हमारे श्रीगुरु और सखा,
जन्म से लेकर अन्त तक, हमारा धर्म आपने है देखा।
गीता के श्लोकों में आपने कहा है-मैं उद्धार करता हूँ।
सही धर्म-कर्म करने वालों से मैं बेहद प्यार करता हूँ।
घोर संकट में पड़ी हूँ, हे कृष्ण सुनो दासी की पुकार,
नमन है आपको, नैया पार करने में ना करना इनकार।
हे केशव ‘देवन्ती’ से भूल हुई हो, तो क्षमा कर देना,
नैया हमारी भंवर में, आज डूबने वाली है बचा लेना।
हे पालनहारे, हे कन्हैया, तेरे भरोसे मैं छोड़ दी हूँ नैया,
देवन्ती भी प्यार करती है, जितना करती यशोदा मैया॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |