प्रिया सिंह
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)
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शब्द मेरे…बेइन्तहा चुभते तो जरूर हैं,
अपने भी यकीनन…झुकते तो जरूर हैंl
जल-जल कर खाक बच जाती है उनकी,
शोले भी कभी-कभी बुझते तो जरूर हैंl
चलते हैं यकीनन बेबाक होकर राहों पर,
गलत कदम भी उनके रूकते तो जरूर हैंl
कीचड़ उछालते हैं बेशक अपने ही मुझ पर,
दल-दल भी एक दिन सूखते तो जरूर हैंl
दरियादिली यूँ तो अक्सर दिखाते है यहाँ,
खुदा भी मंदिर में बैठ कर लूटते तो जरूर हैंl
यूँ तो जगमगाहट के साथ मशहूर हैं तारे यहाँ,
सितारे दिन में शायद यहाँ टूटते तो जरूर हैंl
अनजाने पचड़ों में कूदते है शौक से अपने,
दूसरे को देख कर वो…थूकते तो जरूर हैंll
परिचय-प्रिया सिंह का बसेरा उत्तरप्रदेश के लखनऊ में है। २ जून १९९६ को लखनऊ में जन्मी एवं वर्तमान-स्थाई पता भी यही है। हिंदी भाषा जानने वाली प्रिया सिंह ने लखनऊ से ही कला में स्नातक किया है। इनका कार्यक्षेत्र-नौकरी(निजी)है। लेखन विधा-ग़ज़ल तथ कविता है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जन-जन को जागरूक करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा को मानने वाली प्रिया सिंह देश के लिए हिंदी भाषा को आवश्यक मानती हैं।