डॉ.अशोक
पटना(बिहार)
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यह नज़र नहीं आती है,
ग़म की चादर बड़ी विषैली
मृतप्राय: होती है
सुहाग वाली चुनरी नहीं है अब,
ग़म की चादर बड़ी विषैली दिखती है अब,
नर पिशाचों की भीड़ में
जान सिसकती बेबस रहती है।
मजलूमों का भाव लिए,
डर की धार तेज़ करते हुए
न घर में सम्मान,
हर पल-हर क्षण-हर दिन अपमान
घर में अपनेपन का मृत्यु त्राण।
खुशियाँ बांटने वाली,
नजर अब नहीं दिखाई देती यहां
विषैले ताल में दम घुटता,
संसार बिल्कुल अनजान अब यहां
अपशकुन और अपमान आज अब स्त्री की शोभा,
घर में कोई नहीं है
जहां जीवन में खुशहाली,
का पैगाम मिलता यहां।
मृतप्राय: परित्याग और परिताप का,
सूना है अब संसार
नहीं दिखता कोई खेवनहार,
यह है उतरे हुए सुहाग की कहानी
विषैले ताल में तैरती हुई स्त्री की,
दुःखभरी मार्मिक तकलीफ़ भरी जिंदगी की
अफ़सोस से भरी, हारी हुई,
सम्पूर्ण जीवन की दास्तां।
नवजीवन की बाट जोहती,
विषैले ताल में दम तोड़ती स्त्री की, कहानी…॥
परिचय–पटना (बिहार) में निवासरत डॉ.अशोक कुमार शर्मा कविता, लेख, लघुकथा व बाल कहानी लिखते हैं। आप डॉ.अशोक के नाम से रचना कर्म में सक्रिय हैं। शिक्षा एम.काम., एम.ए.(अंग्रेजी, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, हिंदी, इतिहास, लोक प्रशासन व ग्रामीण विकास) सहित एलएलबी, एलएलएम, एमबीए, सीएआईआईबी व पीएच.-डी.(रांची) है। अपर आयुक्त (प्रशासन) पद से सेवानिवृत्त डॉ. शर्मा द्वारा लिखित कई लघुकथा और कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिसमें-क्षितिज, गुलदस्ता, रजनीगंधा (लघुकथा) आदि हैं। अमलतास, शेफालिका, गुलमोहर, चंद्रमलिका, नीलकमल एवं अपराजिता (लघुकथा संग्रह) आदि प्रकाशन में है। ऐसे ही ५ बाल कहानी (पक्षियों की एकता की शक्ति, चिंटू लोमड़ी की चालाकी एवं रियान कौवा की झूठी चाल आदि) प्रकाशित हो चुकी है। आपने सम्मान के रूप में अंतराष्ट्रीय हिंदी साहित्य मंच द्वारा काव्य क्षेत्र में तीसरा, लेखन क्षेत्र में प्रथम, पांचवां व आठवां स्थान प्राप्त किया है। प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर के कई अखबारों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं।