प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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पहले पौरोणिक वास्तुकार और शिल्पकार देव विश्वकर्मा
परमपूज्य हैं, तापमयी हैं, प्रखर हैं स्वमेव विश्वकर्मा।
मान्य देव हैं,अति उत्कृष्ट हैं, प्रभुतामय देव विश्वकर्मा,
वास्तुशिल्पी हैं, अभियंता प्रखर, सृजन देव विश्वकर्मा।
भगवान विश्वकर्मा की महत्ता सदैव जाज्वल्यमान है,
जिन पर हिंदू ही नहीं, सभी देवताओं को अभिमान है।
मान्यताओं के अनुसार वे सर्वमान्य महान कर्मयोगी थे,
वे कर्म के रूप, तेजस्वी थे, कदापि भी न भोगी थे।
उन्होंने सतयुग के स्वर्गलोक, त्रेतायुग की लंका बनाई,
द्वापर की द्वारिका जैसी संरचना उनसे ही अस्तित्व पाई।
आज उनकी पूजा कर कारीगर और इंजीनियर हर्षित हैं,
अपने कार्यक्षेत्र में सफलता और बेहतरी उन पर गर्वित है।
इतिहास और पौराणिक मान्यताएं जय उनकी बोलें,
हम, सृष्टि के पहले वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा के हो लें।
दुनिया के पहले वास्तुकार देव विश्वकर्मा तुम्हारी जय हो,
ब्रह्मांड की रचना में ब्रह्मा के सहायक तुम्हारे यश का न क्षय हो।
सबसे पहले संसार का मानचित्र तुमने किया तैयार,
मधुर कार्य किए, नित रहा यशस्वी सुनहरा संसार।
भगवान विश्वकर्मा की पूजा इसीलिए होती है हर साल,
जो संवर्धित करती है अभियंताओं, श्रमिकों का हाल।
१७ सितंबर का दिवस अति पुण्य प्रताप से होता है भरा,
भगवान विश्वकर्मा की दया से ही यह जगत है हरा-भरा॥
परिचय-डॉ. प्रताप मोहन का लेखन जगत में ‘भारतीय’ नाम है। १५ जून १९६२ को कटनी (म.प्र.)में अवतरित हुए डॉ. मोहन का वर्तमान में जिला सोलन स्थित चक्का रोड, बद्दी (हि.प्र.)में बसेरा है। आपका स्थाई पता स्थाई पता हिमाचल प्रदेश ही है। सिंधी,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. मोहन ने बीएससी सहित आर.एम.पी.,एन. डी.,बी.ई.एम.एस., एम.ए., एल.एल.बी.,सी. एच.आर.,सी.ए.एफ.ई. तथा एम.पी.ए. की शिक्षा भी प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र में दवा व्यवसायी ‘भारतीय’ सामाजिक गतिविधि में सिंधी भाषा-आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का प्रचार करने सहित थैलेसीमिया बीमारी के प्रति समाज में जागृति फैलाते हैं। इनकी लेखन विधा-क्षणिका, व्यंग्य लेख एवं ग़ज़ल है। कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी है। ‘उजाले की ओर’ व्यंग्य संग्रह प्रकाशित है। आपको राजस्थान से ‘काव्य कलपज्ञ’,उ.प्र. द्वारा ‘हिन्दी भूषण श्री’ की उपाधि एवं हि.प्र. से ‘सुमेधा श्री २०१९’ सम्मान दिया गया है। विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अध्यक्ष (सिंधुडी संस्था)होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य का सृजन करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं प्रेरणापुंज-प्रो. सत्यनारायण अग्रवाल हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिले,हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए। नई पीढ़ी को हम हिंदी भाषा का ज्ञान दें, ताकि हिंदी भाषा का समुचित विकास हो सके।”