हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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रचना शिल्प:२८ मात्रा प्रति चरण। १६, १२ पर यति…
अम्बर से किरणें आकर के, धरती में बिछ जातीं।
झीलों नदियों की सतहों पर, स्वर्ण रजत दिखलातीं॥
सूरज की किरणों ने धरती, में सोना बिखराया,
निकला चंदा अम्बर में तो, चाॅंदी लेकर आया।
इनकी किरणें हर जीवन को, प्रीत भली सिखलातीं,
अम्बर से किरणें आकर के…॥
अम्बर किरणें देता है तो, धरती नीर -पवन दे,
सावन के मौसम में अम्बर, बूंदों से फिर जल दे।
प्रभु की रचना कितनी न्यारी, देन-लेन सिखलाती,
अम्बर से किरणें आकर के…॥
मन्दिर मस्जिद के धर्मों में, सबके जीवन बॅंटते,
मन की श्रृद्धा मिट जाती फिर, जात-पात में छॅंटते।
साॅंसें-धड़कन कब जीवन में, कोई फर्क बतातीं,
अम्बर से किरणें आकर के…॥
परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।