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पर्यावरण पोषक हरित दीपोत्सव

डॉ. मीना श्रीवास्तव
ठाणे (महाराष्ट्र)
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जगमग जीवन ज्योति (दीपावली विशेष)…

दीवाली को मनाने के पारंपरिक तरीके प्रकृति और हरित सौंदर्य के साथ हमारे बंधन को गहरा करने के लिए पारंपरिक संकेतों का मार्गदर्शन करते हैं। किसान और उसकी गृहस्वामिनी इस अवधि के दौरान प्रसन्न होते हैं, क्योंकि खेतों की जुताई और कड़ी मेहनत के बाद समृद्ध परिपक्व फसलों की सुनहरी फसल उनके हाथ में आती है। वसुबारस (अश्विन द्वादशी) के दिन किसान परिवार गाय, बैल और बछड़ों की पूजा करके अपना आभार व्यक्त करता है। फिर उसके पश्चात् आई धनत्रयोदशी पर हम भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं, जो स्वास्थ्य वरदान को प्रदान करते हैं। निसर्गदत्त वनस्पतिजन्य औषधि का अमृत कलश धारण करने वाले धन्वंतरि, अमृत मंथन के बाद उत्पन्न हुए १४ रत्नों में से एक हैं। नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली) के दिन देवी ने नरकासुर का वध किया था, इस दिन का महत्व यह है कि हम अपने घर के और आसपास के क्षेत्र के हर कोने को सम्पूर्ण रूप से स्वच्छ करते हैं, साथ ही हम सुगंधित तेल और उबटन लगाकर अभ्यंग स्नान भी करते हैं। यह स्नान इन ठंड के दिनों में प्रकृति तादात्म्य साधने हेतु हमारी त्वचा को उचित नमी देता है। मित्रों, यदि आप पूरे शीतकाल में इसका पालन करते हैं तो महँगे शीतकालीन सौंदर्य प्रसाधनों का सहारा लेने की कोई आवश्यकता नहीं है! (यहाँ हमारी महान भारतीय संस्कृति को ध्यान में रखते हुए हमसे अपने मन और आत्मा को समान रूप से शुद्ध करने की अपेक्षा की जाती है।)

दिवाली का मुख्य दिन लक्ष्मी पूजन या आश्विन अमावस्या है। अन्य अमावस्याएँ भले ही अशुभ मानी जाती हों, परन्तु आश्विन अमावस्या अत्यंत शुभ मानी जाती है। अमावस्या की घोर कालरात्रि में मिट्टी के नन्हें दीपक जगमगाकर अँधेरे में रोशनी का साम्राज्य स्थापित करते हैं। बृहदारण्यकोपनिषद् में ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ (‘हे जगतोद्धारक, हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो’) इस प्रसिद्ध श्लोक में एक भौतिक परिप्रेक्ष्य तो है, लेकिन ज्ञान के प्रकाश से हमारे मन और आत्मा को प्रबुद्ध करने के लिए भगवान से प्रार्थना भी समाविष्ट है, ताकि हमारे मन के भीतर छाए अज्ञान का अन्त हो सके।
गोवर्धन पूजा (कार्तिक प्रतिपदा) के दिन पर्वतों और गायों, बैलों एवं बछड़ों की पूजा का महत्व है। पहाड़ों की प्राकृतिक हरी-भरी सुंदरता न केवल आँखों को भाती है, बल्कि वे मौसमी चक्र और खाद्य श्रृंखला का उचित संतुलन भी बनाए रखते हैं।
कार्तिक एकादशी पर पंढरपुर की यात्रा का अर्थ है प्रिय विठ्ठल भगवान को देखने की अतीव इच्छापूर्ति। यह यात्रा (वारी) करने हेतु शारीरिक और मानसिक धैर्य की अत्यधिक आवश्यकता तो होती ही है, परन्तु साथ ही प्रकृति के सुखमय सानिध्य के कारण श्रम का आभास नहीं होता। हमारे आँगन में विराजमान तुलसी का हमारे जीवन में अनोखा महत्व है। आधुनिक चिकित्सा ने भी तुलसी के लाभकारी औषधीय मूल्यों को स्वीकारा है। हम इस बहुआयामी तुलसी और भगवान कृष्ण के विवाह को कार्तिक द्वादशी के दिन भक्ति और आनंद के साथ मनाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का वध किया था। यह पवित्र दिन दिवाली के त्योहार का समापन करता है। हालाँकि, शहरी इलाकों में दिवाली को अक्सर १-२ दिन के रूप में देखा जाता है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में पूरे एक पखवाड़े तक मनाई जाती है। इसमें दिवाली की तैयारी और वास्तविक पारंपरिक पूजा के दिन भी शामिल होते हैं। इस त्योहार में प्रकृति-देवताओं और विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा का बहुत महत्व माना गया है। इसके अलावा ‘दिवाली का किला’ नामक एक सुंदर संरचना निर्माण करने की प्रथा है, जो बच्चों की कल्पना शक्ति और उत्साह को वृद्धिगत करती है। यह किला बच्चों को इतिहास ही नहीं, बल्कि सुन्दर काली मिट्टी से भी जोड़ता है। शीघ्र उगने वाले गेहूँ, सरसों, धनिया आदि के अंकुरों की ‘फसल’ इन किलों की जड़ें पृथ्वी से जोड़ती हैं। हमारे पूर्वज प्रकृति का सम्मान करते थे और उसके विभिन्न रूपों से अपने-आपको जोड़ते हुए मौसमी सब्जियों और फलों का सेवन करते थे। दरअसल, इस बदलते तापमान के हिसाब से उस दौरान आने वाले त्योहारों के दिनों में कपड़े और खाने-पीने की चीजों की प्रचुरता होती थी। दिवाली के दौरान खाए जाने वाले पारंपरिक खाद्य पदार्थ जैसे लड्डू, चिवड़ा, चकली, शेव, गुजिया आदि के ऊष्मांक शरद ऋतु के लिए पोषक होते हैं।
‘पर्यावरण-अनुकूल दृष्टिकोण’ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना मौजूदा पर्यावरण की रक्षा करने का प्रयास करना है। इसका अगला कदम है इसे ‘हरियाली’ प्रदान करना। इस वर्ष ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ २२ अप्रैल को मनाया गया। इसका विषय ‘प्लास्टिक बनाम ग्रह (पृथ्वी)’ था। तदनुसार, देखें कि क्या हम दीपोत्सव मनाते समय प्लास्टिक से संबंधित ३ ‘आर’ लागू कर सकते हैं ? यानि प्लास्टिक कम करें (रेडयूस), इसे बदलें (रिप्लेस) और प्लास्टिक का पुन: उपयोग (रीयूज) करें। इसमें कोई संदेह नहीं कि प्लास्टिक का उपयोग ‘कम’ करना ही सबसे अच्छा विकल्प है, खासकर एकल उपयोग प्लास्टिक।
मित्रों, हमारे भारत में त्योहार हमारे बच्चों और परिवार के सदस्यों के इर्द-गिर्द घूमते हैं। बेशक रिश्तेदार, पड़ोसी और दोस्त निश्चित रूप से उत्सव की खुशी में इजाफा करते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि हम भारतीय संबंधों को बनाए रखने को बहुत महत्व देते हैं और इन सभी मंडलियों के साथ ख़ुशी के पल साझा करते रहते हैं। दिवाली के लिए आवश्यक वस्तुओं की सूची हमेशा लंबी होती है। नए कपड़े, खिलौने, स्वादिष्ट भोजन, ढेर सारे मेहमानों की आवभगत, समारोह, रंगोली, आकाशदीप, पूजा सामग्री, शुभकामना कार्ड, सजावटी सामान और भी बहुत कुछ….|
आइए अब दिवाली के दौरान उपयोग की जाने वाली प्लास्टिक वस्तुओं के लिए उपलब्ध हरित विकल्पों पर विचार करें-
🔹प्रचार बैनर (कपड़ा)-
प्लास्टिक के फूल, पत्ते, स्टिकर (ताजे फूल-पत्तियाँ, जूट, कपड़ा या अन्य सजावटी वस्तुओं के लिए पुनर्चक्रित (रिसाइकल्ड) कागज। दिवाली के बाद फूल, पत्ते और अन्य पूजा सामग्री को प्लास्टिक की थैलियों में भरकर नदी या कुएं में कदापि न फेंकें। (कुछ स्थानीय नगर निगमों ने ऐसी सामग्री के संग्रह के लिए ‘विशेष कलश योजना’ लागू की है।)
◾प्लास्टिक की प्लेट, कप, गिलास, कंटेनर, कांटे, चम्मच, चाकू (केले के पत्ते की प्लेट, पलाश के पत्तों के दोने और पत्तल, मिट्टी या काँच के कप, बाँस की चम्मच, धातु, काँच अथवा चीनी मिट्टी के घरेलू बर्तनों का उपयोग अधिक मात्रा में किया जाना चाहिए) कम उपयोग करें।
🔹मिठाइयाँ, उपहार के आवरण, निमंत्रण कार्ड एवं सदभावना पत्र (पुनर्नवीनीकरण कागज)-
◾एकल उपयोग प्लास्टिक की पानी की बोतलें-(इनका उपयोग जितना जल्दी बंद हो, उतना अच्छा। (घर में उबालकर ठन्डे किए पानी को बाहर जाते समय धातु की बोतल में ले जाएं। कुल्हड़ और मिट्टी के घड़े और बर्तन का उपयोग करें।)
◾उपहार के रूप में आप उपहार कार्ड पर वृक्षारोपण के बारे में उत्साहजनक संदेश के साथ पौधे और उनके साथ ही जैविक खेती के माध्यम से उत्पादित स्थानीय फलों की सुंदर टोकरियाँ भी दे सकते हैं। सबसे आग्रहपूर्वक अनुरोध है कि पूजा सामग्री और मिट्टी के दीपक स्थानीय बाजारों से ही खरीदें। प्रदूषण बढ़ाने वाली मोमबत्तियों के इस्तेमाल से बचने की सलाह भी दूंगी। वैसे भी यह हमारी संस्कृति नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं कि पृथ्वी माता से सीधा सम्बन्ध जोड़नेवाले मिटटी के दियों के मद्धिम प्रकाश में देवी लक्ष्मी हम पर अनंत कृपा प्रदान करेंगी। आजकल रंगोली में कृत्रिम रंगों का प्रयोग किया जाता है, जो मिट्टी और पानी को प्रदूषित करते हैं। इनसे त्वचा की एलर्जी हो सकती है। रंगोली के लिए हम सफेद रंगोली यानी चावल के आटे का उपयोग कर सकते हैं। उसे हल्दी, कुंकुम, फूल, पत्तियों और मिट्टी की दियालियों से सजा सकते हैं।
अब थोड़ी बात प्रदूषण बढ़ाने वाले और कर्ण कटु पटाखों के बारे में। मैं तो कहूँगी कि पटाखों का इस्तेमाल बंद होना चाहिए। यदि संभव नहीं है, तो कम से कम अपने समुदाय की दिवाली को सर्वसम्मति से एक जगह पर इकट्ठा होकर ध्वनि रहित नेत्र-सुखदायक पटाखे फोड़ने के बारे में सोचें। परिसर के निवासी ऐसे पटाखों और खाद्य पदार्थों के लिए योगदान कर सकते हैं। इससे स्नेह और मित्रता के बंधन भी मजबूत होंगे। इस दिवाली स्नेह-मिलन में पौधे लगाना, एकल-उपयोग प्लास्टिक को बंद करना और पर्यावरण-अनुकूल सामग्री के उपयोग करने के बारे में उचित सन्देश देना कदापि न भूलें।

हमें निकट के अनाथालय और वृद्धाश्रम में यथाशक्ति दान करते हुए उनके दिवाली मिलन समारोहों में शामिल होकर अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता को बनाए रखना चाहिए। बिजली की रोशनी से जगमगाते अमीर घरों की तुलना में हमारे द्वारा प्रज्वलित स्नेह के इन ‘उज्ज्वल दीप-दान’ की उजाड़ और एकाकी घरों में सर्वाधिक प्रतीक्षा की जाती है।