शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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जिंदगी की खातिर (मजदूर दिवस विशेष)…..
इस मिट्टी में जन्म लिया इसमें ही खेला खाया,
इस मिट्टी में बीता बचपन और बुढ़ापा आया।
मज़दूरी करते-करते ही उमर बीत गयी सारी,
आज तलक भी सर से मेरे उतरी नहीं तगारी।
रोज-रोज करके मज़दूरी पेट पालते घर का,
कैसे बिटिया ब्याहेंगे ये फर्ज बड़ा जीवन का।
सर्दी-गर्मी धूप हो चाहे सारे सह जायेंगे ,
एक समय नहीं मिले मजूरी भूखे मर जायेंगे।
मज़दूरों की किस्मत में पल का आराम नहीं है,
हड्डी य़ूँ दिखती है जैसे तन पर चाम नहीं है।
फिर भी मेहनत करते हैं हम मेहनत की हैं खाते।
लाद पीठ पर धान हमीं तो घर-घर में पहुँचाते।
हाड़ तोड़ते खून जलाते तब मज़दूरी पाते,
तोड़ के पत्थर खाते रोटी तब मज़दूर कहाते।
मज़दूरी से ही चलता है अपना घर-संसार,
इससे ही पूरे होते हैं सपने सदा बहार।
बड़े-बड़े महलों का काम बिना मज़दूर न होता,
हम सब मज़दूरी करते हैं दादा हो या पोता॥
परिचय–शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है