राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड)
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दुनिया में नहीं कोई अपना
बस यह केवल मोह-माया है,
रिश्ते-नातों की तो बात छोड़ो
स्थाई नहीं अपनी भी काया है।
आने वालों को तो है एक दिन जाना
संसार है मात्र दो दिन का ठिकाना,
आए हो तुम अपने भाग्य को लेकर
सत्कर्म लेकर यहां से तुम्हें है जाना।
धन दौलत रुतबा सब है मात्र बंधन
हरि से जुड़ जा वही है केवल चंदन,
इस चंदन का लेप तन मन में लगाओ
जन्म-मृत्यु के बंधन से अब मुक्ति पाओ।
मत कर अभिमान अपने पद का
कल न था तेरा, न कल फिर रहेगा,
जगत को सत्कर्मों से जो भी सींचेगा
मर कर भी वह जग में फिर जिएगा।
सत्य है युक्ति सत्य है मुक्ति
सत्य सिवा ना कोई शक्ति,
मात्र सत्य की ही करो पूजा
इसके बिना न कोई और दूजा।
माया-मोह के बंधन से हमें दूर रहना है,
सदैव जरूरतमंदों की सेवा करना है।
सत्य पर जीना और सत्य पर मरना है,
मरकर भी कर्म से जग में अमर रहना है॥
परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।