बबिता कुमावत
सीकर (राजस्थान)
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जब भी सब्र का बाँध टूट जाएगा,
हर मुसाफिर राह में छूट जाएगा
आशा व विश्वाश की डोर टूट जायेगी,
मुसीबतों की सिसकियाँ भी उभर जाएगी।
सब्र का बांध कब तक रह पाएगा,
अवसाद में जीवन कब तक जीया जाएगा।
जब-जब अपने पराए बन जाएंगे,
तब-तब सब्र के बांध टूट जाएंगे।
मन के क्रंदन समक्ष सबके आ जाएंगे,
खामोशी के दामन भी बंध जाएंगे।
दिवारें हिम्मत की कमजोर हो जायेगी,
जब भी वफादारी की परीक्षा ली जाएगी।
आँखो में वेदना की लहर समा जाएगी,
दिल में भी तड़प की घुटन छा जाएगी।
दर्द-ए-दिल दृष्टिगत ना किसी को होगा,
स्त्री का अंतस जिंदा दफन हो जाएगा।
आवेग की धारा जब उफन जाएगी,
सब्र के इम्तिहान की डोरी टूट जाएगी।
सब्र का बांध टूट जाएगा,
मुसाफिर राह में छूट जाएगा॥
