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बाजे परिणय बन शहनाई

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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कसमें, परछाई, याद, फूल खूशबू, चाहत, कलियाँ, खामोश,
मुहब्बत, लहरें, सुहानी, रंग, दुनिया, रात, वादे-इरादे, दिल इत्यादि।

जीवन के विश्वास पटल पर तुमने कितनी कसमें खाईं,
हम दिल-दिल अरमान सजाए, थी जीवन की परछाईं।

यादों के सुनहर खुशबू बन फूल बने तुमने मुस्काया,
कोमल किसलय कलियाँ खिलने चाह गुलशन हरषाया।

दीदार मुहब्बत गुलज़ारे मन ख़ामोश वफ़ा देखी इठलाई,
नूरे कुदरत रूप सुहानी बन सप्त सिन्धु हिलोरें लहरें लाई।

सतरंगी नवभोर किरण बन घन इश्क रंग दिल में बरसाई,
वादे नेक इरादे इश्की महफ़िल गूंज तराने दिलकश गाई।

बेहतरीन अहसास नज़ाकत प्यार बिना जानम तन्हाई,
आ जा हमदम इश्क विश्क हम बाजे परिणय की शहनाई।

आज सजाएँ मंजिल मिल हम हो भविष्य जीवन सुखदाई।
एक-दूजे की प्रीत मिलन शुभ चन्द्र कला सरगम हरजाई।

रात मुदित प्रियतम छवि पूनम चाँदनी बनी लुगाई,
छोड़ सितम गम खुशियाँ भर मुख रजनीगंधा फिर मुस्काई॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥