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बिना पंख परिंदे…

एम.एल. नत्थानी
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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खुली छोड़ दो जिंदगी,
नीले खुले आसमान में
अक्सर रखी हुई चीज़ें,
नहीं मिलती सामान में।

हर शख्स की मुश्किलें हैं,
फिर भी रोज़ जिंदा है
हौंसलों की उड़ान से ही,
बिना पंख का परिंदा है।

कौन किसे क्या कहता है,
लोग कितने खिलाफ हैं
जितने भी मेरे साथ हैं,
वो सब तो लाजवाब है।

इंसान सभी है यहां पर,
फ़र्क सिर्फ़ इतना है
कोई ज़ख्म देता है,
कोई ज़ख्म भरता है।

कोई रिश्ता निभाता है,
कोई आजमाता है।
जीवन की चाहत में,
मन उड़ा जाता है॥

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