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बियाबान जिंदगी…

एम.एल. नत्थानी
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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जिंदगी के बियाबान में,
जो तनहा रह जाते हैं
दिल तड़पता रहता है,
चैन से नहीं रह पाते हैं।

जीवन की शाम होते ही,
ये परिवार टूटने लगते हैं
हरे-भरे रिश्तों के पेड़ भी,
फिर से सूखने लगते हैं।

डाली से बिछड़े शाख पर,
सर रखकर रोया करते हैं।
पतझड़ के पत्तों की छाँव,
में जीवन गुजारा करते हैं॥

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