दीप्ति खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
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बेटियाँ हैं शक्ति स्वरूपा,
नवदुर्गा की छाया
हर रूप में बिखरे इनसे,
प्रेम, ममता और माया।
‘शैलपुत्री’-सी सादगी लेकर,
पर्वत-सी अडिग सदा रहती
संघर्षों की धूप सहकर भी,
मुस्करा कर उसने सदा सही।
‘ब्रह्मचारिणी’-सी संयमधारी,
ज्ञान पथ पर चलने वाली।
सुंदर सपनों के दीप जलाए,
दुनिया से न डरने वाली।
‘चंद्रघंटा’ बन जब गरजे,
अत्याचार को चूर करे
बेटी जब न्याय की जंग लड़े,
झूठ का पर्दाफाश करे।
‘कूष्माण्डा’-सी सृजन शक्ति,
बेटी हर घर को स्वर्ग बनाती है
घर उपवन को सींच प्यार से,
ममता से महकाती है।
‘स्कंदमाता’ की तरह बेटियाँ,
परिवार का निश-दिन ध्यान रखें
अपनों के दु:ख में वह रोती हैं,
हर दर्द में बेटियाँ ढाल बनें।
‘कात्यायनी’ सा साहस बेटी में,
अन्याय से जो न कभी डरे
सच की राह चले निडर,
अपने अधिकारों के लिए लड़े।
‘कालरात्रि’ बन गरज उठे जब,
हर पाप का नाश करे
सच की सदा लिए मशाल,
कुकर्मियों का नाश करे।
‘महागौरी’ सी शुद्धि जिसमें,
सरल हृदय की बेटी मूरत
पावन मन निर्मल हृदय,
प्रेम, ममता, करुणा की दायक।
‘सिद्धिदात्री’ बन दे आशीष,
घर-घर में समृद्धि लाए।
बेटी हो जिस आँगन में,
सौभाग्य वहाँ खुद आ जाए।
नवदुर्गा के नौ रूपों में,
हर बेटी में बसती है।
उसके हर रूप में ,
माँ की छवि दिखती है॥