डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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चिंतन….
१५ अगस्त १९४७ को इंडिया गुलामी की जंजीरों से मुक्त हुआ और हमने अमन- चैन की सांस ली। उस समय सभी कौम ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। कुछ फिरक़ापरस्तियों के कारण बंटवारा हुआ और उसके पहले से ही नफरत के बीज अंकुरित होना शुरू हो गए थे। शुरूआती दौर में जातिय हिंसा, दंगे बहुत हुए और फिर कुछ सियासतदारों ने अपने मतों के कारण इसे सरपरस्ती दी तथा अंकुरण के बाद नफरत की फसल बहुत फली-फूली। इसका असर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पड़ा और पड़ोसी मुल्कों ने भी खुला नंगा नाच किया।
देश बहुत विशाल और आबादी से भरपूर होने के बाद प्रगति के सोपानों में बढ़ा। बढ़ोतरी हुई, जो शुभ संकेत रहा। राजनीतिक दाव-पेंच के कारण किसी न किसी से जुड़ाव हुआ। युद्ध के बाद खाद्यान्न की कमी से हरित क्रांति का प्रादुर्भाव हुआ तो उसके बाद जनसँख्या की बेतहाशा वृद्धि होने से सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, जातिगत ताना-बाना प्रभावित हुआ। इससे
सामाजिक,जातिगत असंतुलन बढ़ा और कुछ-कुछ संविधान में संशोधन किए गए। इससे कुछ जातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ने लगा और पड़ा भी। इसी बीच हिन्दू,जैन,ब्राम्हण क्षत्रिय आदि की आबादी का अनुपात घटने लगा और अन्य जातियों की संख्या बेतहाशा बढ़ी और बढ़ाई गई। दूसरी ओर भोजन में सेंधमारी कर मांसाहार का प्रचलन प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष में आक्रामक
बाजारीकरण के कारण बढ़ा, जिससे शाकाहारियों का अस्तित्व खतरे में पड़ने लगा। इसके साथ ही दलगत राजनीति, चुनाव का घटिया स्तर और मतों की संख्या बढ़ाने के कारण भविष्य अंधकारमय और गर्त में जाने को तैयार है, क्योंकि सामाजिक, धार्मिक असंतुलन और आहार पर कुठाराघात होने के कारण शाकाहारियों की संख्या कम से कमतर होगी और मांसाहारियों की संख्या बढ़ेगी। उनका प्रभुत्व बढ़ेगा और जब उनकी आबादी बढ़ेगी तब अन्य लोग भयभीत होंगे।
प्रजातंत्र में संख्या बल के आधार पर शासन-सत्ता चलती है। जब जिनका बाहुल्य होगा, वे सत्ता के अधिकारी होंगे। हमारे हिन्दू,जैन,ब्राम्हण और क्षत्रिय आदि ने सीमित परिवार बनाकर पैर पर कुल्हाड़ी पटकी है। आज हिन्दू, जैन आदि के लड़के -लड़कियां विदेश में रहकर अपने देश से सम्बन्ध कम बना रहे हैं और उन्हीं देशों के विकास में संलग्न हैं। उनसे कोई अपेक्षा करना असंभव है।
दूसरा अधिक उम्र में शादी करना और उसके बाद पहले भविष्य,फिर परिवार की चिंता, ‘लिव इन रिलेशन’ के कारण आबादी का नियंत्रण, ना-उम्मीदी और वर्तमान में अपने-आपसे शादी करना, ये भ्रांतियाँ मात्र हिंदू,ब्राम्हण,जैन और क्षत्रिय वर्ग में हो रही है। अन्य वर्ग इन कुरीतियों से अछूता है।
ऐसे में शासन भी बहुलता के आधार पर निर्णय लेने को बाध्य होता है। अन्य समाज में कुछ विषयों में एकता होने से अपने पक्ष में निर्णय करवा लेते हैं और उसका कारण मत और सामाजिक समरसता है। इसके लिए अब आवश्यक है कि हिन्दू,जैन,ब्राम्हण और क्षत्रिय आदि अपनी आबादी बढ़ाएं। जब हमारी आबादी नहीं होगी तो हम अपने आपको कैसे सुरक्षित रख सकेंगे…?
विषय गंभीर है,तर्क अनेक हो सकते हैं, पर सत्य हमेशा एक होता है, जो कटु होता है। जब कोई बात साधु-संत बोलते हैं, चेतावनी देते हैं तो उसका अर्थ है कि भविष्य अंधकारमय और घातक है। सरकार ने भी हिन्दू आदि समाज के ऊपर जो प्रतिबन्ध लगाए हैं-जैसे नौकरी न देना अन्य सुविधाएँ न देना आदि, उस पर विचार करना होगा। सच को स्वीकारो और भविष्य सुरक्षित बनाओ। देश, समाज, जाति व परिवार को सुरक्षित रखना है तो इस ओर पहल जरुरी है, अन्यथा भविष्यवाणी सही साबित ना हो जाए।
परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।